संत तो संतता से है न कि बाहरी वेशभूषा या दिखावा से -श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

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गढीनेगी/रामनगर। प्रेमावतार युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यदि संतता के मार्ग पर चलना चाहे तो अपने अंदर क्षमा, करुणा, उदारता, कृपा आदि सद्गुणों को अपनाएं। संत तो संतता के गुणों से है ना कि बाहरी वेशभूषा, दिखावा इत्यादि से। साधु, भक्त या महात्मा बनकर जो लोगों को धोखा देते हैं वे स्वयं को धोखा देते हैं व अपना जीवन पापमय बनाते हैं। दूसरों का अहित चाहने वाले या करने वाले का कभी हित नहीं होता। पतन या पाप का कारण प्रारब्ध नहीं है बल्कि विवेक अनादर करके कामना के वश में होने पर मनुष्य पापाचरण करता है तभी उसका पतन होता है। 

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किसी भी स्थिति अवस्था, प्राणी, पदार्थ, वस्तु आदि से जो सुख की कामना रखता है वह कभी सुखी नहीं हो सकता। वह सदैव निराश हो ही रहेगा व दुखी रहेगा। उन्होंने कहा कि अधर्माचरण करने वाले कुमार्गगामी लोगों का संग त्यागकर, जितेंद्रिय, श्रेष्ठ महापुरुषों का संग व उनकी सेवा करके अपने जीवन को कल्याणमय बनाएं। क्योंकि सत्पुरुषों का आचरण व कार्य सदैव अनुकरणीय होता है। उन्होंने कहा कि सत्संग का प्रकाश हमारे अंतर्मन को प्रकाशित करता है और हमें भी उस ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर मन में धारण कर परमपिता परमेश्वर को पाने का प्रयास करना चाहिए।  मगर जब तक सत्य का संग नहीं होगा सत्संग से भी कोई लाभ प्राप्त हो नहीं सकेगा।  जिस प्रकार सूरज की किरणें हमें तब तक लाभ नहीं पहुंचा सकती जब तक कि हमारे घरों की खिड़की दरवाजे बंद रहेंगे।  ठीक उसी प्रकार हम गुरु व परमात्मा की कृपा के अधिकारी तभी बन सकते हैं जबकि हम उनके द्वारा दिए गए ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर्गत में उतारेंगे। अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि असत्य, अधर्म, अन्याय व बुराई हो सकता है कि हमें कुछ समय के लिए फलते फूलते से प्रतीत हों परंतु अंत में विजय सत्य, धर्म व अच्छाई की होगी। हम सभी इन प्रतीकात्मक पर्वों से प्रेरणा व संदेश ग्रहण कर अपने जीवन को दिव्य, मर्यादित, कर्तव्यपरायण, प्रभुभक्तिमय, राष्ट्रीयता व मानवता से ओतप्रोत बनाएं। उन्होंने कहा कि आज लोगों के धर्म से विमुख होने के कारण ही मानवता की कमी भी दिखाई देने लगी है। हमें समाज को बदलने के लिए लोगों की दृष्टि बदलने की आवश्यकता है। किसी को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारना चाहिए। यह सब बातें अध्यात्म के ज्ञान के बिना संभव नहीं है। जो व्यक्ति विपत्तियों, बाधाओं व परेशानियों से लड़ने की क्षमता रखता है वही जीवन के विकास का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है। इस दौरान श्री हरि कृपा धाम आश्रम में अपार जनसैलाब उमड़ा तथा दूरदराज से काफ़ी संख्या में भक्त जन महाराज श्री के दर्शनार्थ व दिव्य अमृत वचनों को सुनने के लिए लगातार पहुँच रहे हैं।

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