सरकारी विद्यालयों को क्लस्टर/मर्जर करने के विरोध में परिवर्तनकामी छात्र संगठन ने प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री को भेजा ज्ञापन 

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खबर सच है संवाददाता
 
हल्द्वानी। उत्तराखंड में कक्षा 1 से 12 तक सरकारी विद्यालयों को क्लस्टर/मर्जर करने से विद्यालयों के बन्द होने के विरोध में परिवर्तनकामी छात्र संगठन ने प्रदर्शन कर एसडीएम हल्द्वानी के वैयक्तिक अधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा गया।
 
इस दौरान हुई सभा में कहा गया कि उत्तराखंड में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और इंटरमीडिएट तक सरकारी विद्यालयों को मर्ज कर क्लस्टर स्कूल बनाने की बातें व हजारों विद्यालय बंद होने की संभावना जताई जा रही हैं।उत्तराखंड सरकार तर्क दे रही है कि कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों को दूसरे विद्यालयों में मर्ज कर क्लस्टर बनाने से छात्रों को बेहतर संसाधन व शिक्षा प्रदान होगी। उत्तराखंड सरकार यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत कर रही है। सरकार शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार और बुनियादी सामाजिक जरूरत व जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रही है।
 
उत्तराखंड जैसे कठिन भौगोलिक पहाड़ी इलाकों और मैदानी गांवों में काफी दूर-दूर तक विद्यालय नहीं होंगे तो कई छात्र शिक्षा से महरूम हो जाएंगे। पहले से ही पहाड़ी इलाकों में दूर-दूर स्कूल होने के कारण छात्रों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्राथमिक से इंटरमीडिएट तक के सरकारी विद्यालयों में कमजोर व गरीब-वंचित तबके के छात्र पढ़ने आते हैं। स्कूल बंद (मर्ज) होने से छोटे-छोटे बच्चों के लिए पास के दूसरे सरकारी विद्यालयों में जाना और मुश्किल हो जाएगा। संसाधनों के अभाव में गरीब बच्चों के अभिभावकों के पास अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़ाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचेगा। छात्राओं की शिक्षा पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। गांव में सरकारी विद्यालय न होने पर सबसे पहले उनको ही शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा। साथ ही विद्यालय बंद होने से लाखों स्थाई रोजगार, भोजनमाताओं आदि के रोजगार पर भी फर्क पड़ेगा। शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर और सीमित हो जाएंगे।
 
प्राथमिक व इंटरमीडिएट विद्यालयों को मर्जर के नाम पर बंद किया जाना शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का भी खुला उल्लंघन है। जिसकी धारा 6 में स्पष्ट प्रावधान है कि न्यूनतम 300 की आबादी में व 1 किमी के दायरे में प्राथमिक विद्यालय स्थापित करना होगा। यह संविधान के अनुच्छेद 21-A शिक्षा के मौलिक अधिकार का तथा नीति निदेशक तत्व के अनुच्छेद-46 का भी स्पष्ट खुला उल्लंघन है। जो कि अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने पर बल देता है।
 
इस दौरान दिए ज्ञापन में निम्न मांग की गईं
1. विद्यालयों के मर्जर के नाम पर उन्हें बंद करने पर रोक लगाई जाए।
2. छात्र विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को वापस लिया जाए।
3. सभी नागरिकों के लिए निःशुल्क व एक समान वैज्ञानिक तार्किक शिक्षा उपलब्ध कराई जाए।
 
इस दौरान पछास से महेश, चंदन, हेमा पाण्डेय, उमेश पाण्डे, अनिशेख चन्द्र, विपिन, सामाजिक कार्यकर्ता दीप चन्द्र पाण्डेय और क्रालोस से मुकेश भंडारी आदि लोग शामिल थे।
 
 

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