खबर सच है संवाददाता
नैनीताल/अल्मोड़ा। माता के भक्तों द्वारा कदली वृक्ष से मूर्तियों का निर्माण देर रात पूर्ण होने के साथ ही मण्डप में विराजमान माँ नंदा-सुनंदा के आज (मंगलवार) से भक्तों को दीदार हो सकेंगे।
बताते चले कि कुमाऊँ मंड़ल के अतिरिक्त भी नन्दादेवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नन्दा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नन्दा भी एक है। नन्दा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नन्दा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नन्दा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ही है। शक्ति के रूप में नन्दा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नन्दा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नन्दा के सम्मान में होता है।
कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोथिंग, कपकोट तहसील, चिल्ठा, सरमूल आदि में नन्दा के मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर नन्दा के सम्मान में मेलों के रूप में समारोह आयोजित होते हैं। अल्मोड़ा में नन्दादेवी के मेले का इतिहास यद्यपि अधिक ज्ञात नहीं है तथापि माना जाता है कि राजा बाज बहादुर चंद (सन् १६३८-७८) ही नन्दा की प्रतिमा को गढ़वाल से उठाकर अल्मोड़ा लाये थे। इस विग्रह को वर्तमान में कचहरी स्थित मल्ला महल में स्थापित किया गया। बाद में कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नन्दा की प्रतिमा को वर्तमान से दीप चंदेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया था।
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अल्मोड़ा शहर सोलहवीं शती के छटे दशक के आसपास चंद राजाओं की राजधानी के रूप में विकसित किया गया था। यह मेला चंद वंश की राज परम्पराओं से सम्बन्ध रखता है तथा लोक जगत के विविध पक्षों से जुड़ने में भी हिस्सेदारी करता है। पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं। पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है। यह प्रतिमायें कदली स्तम्भ से निर्मित की जाती हैं। नन्दा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नन्दादेवी के सद्वश बनाया जाता है। सम्भवत: यह मातृ-शक्ति के प्रति आभार प्रदर्शन है जिसकी कृपा से राजा बाज बहादुर चंद को युद्ध में विजयी होने का गौरव प्राप्त हुआ।
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