खबर सच है संवाददाता
रामनगर। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि देवी जगत की उत्पत्ति के समय ब्रह्मसूत्र और जगत की स्थिति में हरि रूप धारण कर लेती है तथा संहार के समय रूद्र मूर्ति बन जाती है । वह देव और मानव जाति के रक्षार्थ युद्ध करते हुए शत्रुओं का संहार करती है। महामोह तथा अहंकार रुपी महिषासुर व राग द्वेष आदि मधु कैटभ को मारने के लिए गुरु उपदेश सत्संग राम कथा व प्रभु वाणी आदि यह सब एक ही है कराल कालिका है। काली हाथ में खडग लेकर महिषासुर वह असुर जो भैसे का रूप धारण कर आया था भैंसे का नही अपितु भैसे के रूप में आए असुर का वध करती है।
महाराज श्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज उनके स्थानों पर इसी के प्रतीक रूप में भैसों की या अन्य जीवो की बलि का अमानवीय व निंदनीय कृत्य महाअपराध है तथा वैदिक शास्त्र संत गुरु प्रभु ज्ञानरूपी खड़क लेकर हमारे अंतर के राक्षसत्व पांच चोर महामोह व मिथया अहंकार रुपी महिषासुर का वध करते हैं। उन्होंने कहा कि इस संसार में कर्म विक्रम अकर्म को समझना बड़ा ही कठिन है ।इनको यहां तो भगवान जानते हैं या तो भगवद तत्व का अनुभव करने वाले महात्मा लोग जानते हैं । अपने मन से कल्पना पर बैठना की यह पाप है यह पुण्य है यह अज्ञानता का लक्षण है परमात्मा के सिवाय ऐसा कौन है जिसको पाप और पुण्य का साक्षात्कार हुआ हो । इसी कारण भगवान खरा खोटा नहीं देखते हैं जो उनकी शरण में आ जाए उसे स्वीकार कर लेते हैं। सुख-दुख,हानि-लाभ,यश-अपयश,जीवन- मृत्यु,अनुकूल-प्रतिकूल सभी में परमात्मा की कृपा का सदैव अनुभव करते हुए प्रभु सिमरन व अपने अपने कर्तव्यों का पालन करते रहने में ही कल्याण है। उन्होंने कहा कि दिव्य नेत्र खुलने पर परमात्मा या आत्मा का स्वरूप दिखाई देगा। बाह्य चर्म नेत्रों से बाह्य चर्म इतयादि ही दिखता है। वह दिव्य दृष्टि या तो प्रभु कृपा कर के दे दें। जैसे अर्जुन द्वारा विराट रूप देखने की इच्छा जाहिर करने पर प्रभू कहते हैं कि इन नेत्रों से तू मेरे उस स्वरूप को नहीं देख सकता इनसे तो सभी देख रहे हैं किसने पहचाना ? तुझे दिव्य नेत्र प्रदान करता हूं । उनसे तू मुझे देख । या गुरु कृपा से प्राप्त हो सकते हैं जैसे ब्यास जी संजय को प्रदान करते हैं। या ऐसा भक्त या संत दे सकता है जैसे बाह्य नेत्र ना होने पर बावजूद धृतराष्ट्र को संजय ने सारा वृतान्त बता दिया व दिखा दिया। मानव जीवन की कृत्रिम आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए नहीं बनाया गया। हमें शरीर का अर्थ केवल निवहि कर सन्तुष्टि प्राप्ति करने के साथ-साथ शेष समय ईश्वर की आराधना जरूरतमंदों की सेवा आदि में लगाना चाहिए। सदाचारपूर्ण जीवन बिताएं ।राष्ट्रीयता,नैतिकता व चरित्र को भी जीवन में महत्व दें। स्वयं को सुसंस्कारित करके समान के लिए स्वयं को उपयोगी बनाएं ।राष्ट्र में सभी को सभी प्रकार के मतभेदों को त्याग कर आपसी प्रेम,एकता व सद्भाव को बनाये रखना है। देश की अमूल्य व महान संस्कृति के महत्व को समझें व उसे जीवन में अपनाएं। अपनी गलतियों, दोषो, विकारो, व्यसनों व बुराइयों को कभी छोटा न समझे। छोटी-छोटी कमियां ही एक दिन बहुत बड़ी कमी बन जाती है जो हमारे जीवन को पतन के कगार पर पहुंचा देती हैं। अपने मन की नही आत्मा की आवाज को सुनें । आपके जीवन में वांछित परिवर्तन भी आना चाहिए। धर्म से,गुरु या किसी संत से अथवा परमात्मा से यदि आप जुड़े हैं तो आपका और भी अधिक उत्तर दायित्व हो जाता है कि आपके आचरण स्वभाव खानपान वाणी संगीत आदि और भी श्रेष्ठ हो। अपने धाराप्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा।