संत, गुरू व परमात्मा का दर दाता का दर है भिखारी का नहीं – श्री हरि चैतन्य महाप्रभु  

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खबर सच है संवाददाता 
गढीनेगी पधारने पर श्री हरि चैतन्य महाप्रभु का हुआ भव्य स्वागत
गढीनेगी। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक़्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि संत, गुरू व परमात्मा का दर दाता का दर है ना कि भिखारी का। आज के तथाकथित संत, गुरू, ब्राह्मण, व शिक्षिकों ने अपने सम्मान व गरिमा को स्वयं खोया है। संत व गुरू हमारी संपत्ति नहीं अपितु संतति चाहते हैं। संपत्ति चाहने वाला लालची, लोभी  व्यक्ति गुरू या संत कदापि नहीं हो सकता। सच्चा भाव ही सच्ची उपासना है। सच्चे हृदय से प्रेम व श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना को परमात्मा अवश्य सुनते हैं चाहे व्यक्ति को वेद, शास्त्र, पुराणों का ज्ञान हो या न हो भाषा शैली भी विशेष हो या न हों चाहे हम शिक्षित हों या अशिक्षित हों, शुद्ध हार्दिक भावनाओं से किसी प्रकार भी प्रार्थना की जाए परमात्मा उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि हम स्वंय इतनी चिंता नहीं कर सकते जितना की प्रभु का चिंतन दृढ़ विश्वास पूर्वक करने पर स्वयं परमात्मा हमारी चिंता करेंगे व ध्यान रखेंगे। संसार में सभी लोग अधिकांशत: किसी न किसी स्वार्थवश ही संबंध रखते हैं यदि उनके हित में बाधा पहुँचेगी व हमारे अंदर उन्हें देने के लिए कुछ भी शेष ना रहेगा (रूप, बल, वाणी, प्रतिष्ठा, धन इत्यादी के माध्यम से) तो प्यार समाप्त हो जाएगा। बिना किसी स्वार्थ के संबंध बनाए रखने वाले अपवाद स्वरूप कुछ ही लोग मिलेंगे। जीव मात्र से बिना किसी स्वार्थ के हित चाहने व प्रेम करने वाले तो एक मात्र संत,गुरु व परमात्मा ही हैं। आज हमारी, हमारे परिवार, देश, समाज की जो दुर्दशा हो रही है। विभिन्न प्रयास करने के बावजूद जिससे हम उबर नहीं पा रहे हैं प्रयास करने के साथ साथ प्रभु से उनकी कृपा याचना से परिपूर्ण भाव सहित प्रार्थनाएँ अवश्य करनी चाहिए। परमात्मा हमारी वस्तुओं, पदार्थों, मान सम्मान इत्यादि का नहीं वह तो हमारी प्रेम व भावनाओं का भूखा है। प्रेम रहित दुर्योधन के अतिथ्य को त्याग कर विदुर की कुटिया में रुख़ा साग व केले के छिलके भी प्रेम सहित स्वीकार करता है। भिलनी के खट्टे मीठे झूठे बेर में उसे जो स्वाद आता है ऐसा तो अयोध्या व जनकपुर के विभिन्न व्यंजनों में भी नहीं आता। हमें परमात्मा के प्रति विश्वास ही नहीं बल्कि दृढ़ विश्वास होना चाहिए। ईश्वर के प्रति मन में यदि संशय आ जाता है, तो उसके प्रति होने वाली भक्ति स्वतः ही नष्ट हो जाती है तथा ईश्वर के प्रति प्रेम भी नष्ट हो जाता है ऐसा तब होता है जब निज हित में चिंतन किया जाता है। प्यार की ना तो कोई परिभाषा होती है और न ही प्यार को किसी बंधन में बाधा जा सकता है। स्वार्थ के रहते आसक्ति को प्यार नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि बिना विचारे कोई क़र्म न करें तथा न ही कुछ बोलें, ना किसी से संबंध बनाए व न ही किसी से कोई व्यवहार करें। विचारशील प्राणी कुछ भी बोलने से, व्यवहार करने, संबंध बनाने या कर्म करने से पहले विचार करता है। जिससे उसे गिलानी पश्चाताप व उपहास का सामना नहीं करना पड़ता।
प्रातः काल श्री महाराज जी ने श्री हरेश्वर महादेव का विश्व शांति एंव भारत की समृद्धि व खुशाहाली की कामना से महाभिषेक भी किया। श्री हरि कृपा आश्रम धाम आश्रम पहुँचने पर हज़ारों भक्तों ने श्री महाराज जी का फूल मालाएँ पहनाकर, आरती उतारकर पुष्प वृष्टि करते हुए “श्री गुरू महाराज, कामां के कन्हैया व लाठी वाले भैय्या” की जय जयकार से भव्य स्वागत किया।
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