जनता के लिये बेशक उचित प्रतिनिधी साबित हो या न लेकिन राजनीती की पाठशाला में जन प्रतिनिधी कहलाने के लिए बड़े से लेकर छुटभैय्ये भी बेताब रहते है। लिहाजा लम्बे समय से आकाओं की चरण पादुकाएं उठाए घूमते अथवा हां में हां मिलाते इन तथाकथितो को पार्टी द्वारा स्थान न मिल पाने पर इनका मुह फूलाना भी जायज ही है। जिसका ज्वलन्त उदाहरण सामान्य निर्वाचन 2022 में उत्तराखंड से लेकर उन सभी पांचों राज्यो में देखने को मिल रहा है।
टिकट वितरण में आगे रही भाजपा में जहां वरिष्ठ नेताओं के साथ ही सैकड़ो की संख्या में समर्थक भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए विद्रोह में आमादा हुए वहीं थोड़ा बहुत विद्रोह का स्वर कांग्रेस में भी उठता दिखने लगा है। हालांकि भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस नेतृत्व, विद्रोह को भांपते हुए टिकट देने में अभी तक सफल ही साबित रहा है। लेकिन उत्तराखण्ड में लंबित 17 सीटो की घोषणा के बाद क्या स्थिति होगी इस पर कुछ कहना अभी सम्भव नहीं।
बहरहाल लगातार चल रहे विद्रोह को लेकर भाजपा नेतृत्व ने तो डेमेज कंट्रोल की तैयारी शुरू कर ली, लेकिन जीत के प्रति विश्वस्त कांग्रेस क्या इससे निपटने को तैयार है इस पर जबाब अभी बांकी है।