भेड़तन्त्र में नेता कितने वजन और कितने चुपड़े चेहरे का है जनता का इससे न कभी सरोबार रहा और नहीं रहेगा, क्योंकि वर्तमान परिपेक्ष्य में शागिर्द एवं सिपहसालार ही नेता की समयानुकूल वैल्यू को जनता के समक्ष रखने में महत्वपूर्ण घटक होते है।
पियादा बना नेता के लिए वजीर की भूमिका अदा कर रहे शागिर्द ही वो चाल चलते है जिसमें अगर चित हुई तो अपना फायदा और पट हुई तो भी अपना फायदा। शतरंज के इस खेल में वजीर को और ज्यादा मजा तब आता है जब खेल सिर्फ मनोरंजन का नहीं वरन चुनाव के दौरान पियादे की मान-प्रतिष्ठा का हो।
ऐसा ही कुछ आजकल लुटिया डुबायें बैठे नेता (शतरंज के पियादे) के इर्द-गिर्द टहलते वजीरों की चाल देख कर असामान्य ही महसूस हो रहा है। वजह भी सामान्य है क्योंकि चुनाव जो नजदीक है और खेल इस वक्त नहीं तो फिर कब होगा। गुल्ला (गुल्लक) तो अभी ही फिट होगा, दिखाएंगे दे दिया और बर्बादी को एक नोट भी नहीं चला जा सका। किश्मत है गुल्ला फिट करने वालों की, कि इस वक्त निर्वाचन की गाइड लाइन भी इन्ही के साथ है, लिहाजा जवाब देने में तकलीफ भी नहीं, बहाना भी साफ है नेता जी क्या करें एमएमसी, एसआईटी का कैमरा लगा है।
परिणाम 90 डिग्री से भी ज्यादा रीढ़ को झुकाकर प्रणाम करने वाले नेताजी की कहानी, जनता के द्वारा नहीं वरन नेता जी के ही वित्त पर पोषित वजीरों के जरिये वाट लगा दी जाती है।