मनोज कुमार पाण्डे – सम्पादक “खबर सच है”
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आदर्श राज्य का निर्माण, प्रत्येक युवा को रोजगार एवं महिलाओं के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाये जायेंगे, राज्य में लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जायेगा। औद्योगिक क्रान्ति के लिए ठोस रणनीति तय की जायेगी तथा और भी कई खोखले वादे, जो सिर्फ चुनावी वक्त में ही प्रदेश के जन प्रतिनिधी व सरकार के नुमाइंदों को याद आते हैं। यही वजह है कि राज्य निर्माण के 21 वर्ष पूर्ण होने को है और हम आज भी अपने हक-हकूक के लिए संघर्षरत है। त्याग, बलिदान और संघर्ष के बाद हमे यह पृथक राज्य मिला। उम्मीद थी कि हमारे अधिकार हमें प्रदत्त हो सकेंगे। लेकिन हुआ क्या, आज भी हम राजनीतिक गुलामी में जकड़े स्वयं को ठगा महसूस कर रहे है। 21 वर्षो में 9 ब्यक्तियों के रूप में 13 बार मुख्यमंत्री बनाने के बाद आज भी हम जन्मजात अधिकार शिक्षा, स्वास्थ, जल-जंगल और जमीन से वंचित है। आवश्यक संसाधनों रोटी-कपड़ा और मकान के लिए जूझते हमारे सीमांत क्षेत्रों के लोग अपनी जमीन छोड़ मैदान की ओर पलायन को मजबूर हैं। वही मैदानी क्षेत्रों व अन्य प्रदेशो के बिल्डर, भू माफिया व शराब तस्कर प्रशासनिक व राजनीतिक सांठ-गांठ का फायदा लेकर पहाड़ में अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे है। अवसरवादी राजनीती के चलते सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से धनी यह प्रदेश आपराधिक क्रान्ति की ओर अग्रसर हो चला हैं। विकास के नाम पर यहा के गांव, शहर, कस्बे अपनी फटेहाल दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। न तो यहा की आबो-हवा ही स्वच्छ रह सकी है और न ही सांस्कृतिक सामाजिक सभ्यता। अपने समाचार पत्र “खबर सच है” के प्रारम्भ से 14 वर्ष तक हम भी इस उम्मीद में राजनायिकों व प्रशासकों की खबरों को प्रकाशित करते रहे, कि प्रदेश हित में नेता व शासक वर्ग बेहतर कार्य का प्रदर्शन कर उत्तराखण्ड को पूर्ण रूपेण विकसित बनाने में अपना योगदान देंगे। लेकिन इन 21 वर्षो में स्थानीय संसाधनों व पहाड़ की जवानी का महज दुरूपयोग ही होता रहा। लिहाजा हमने संकल्प किया है कि हम अपने मौलिक अधिकारों के लिए अपने समाचार पत्र “खबर सच है” को “साझा-मंच” बना कर विकास विरोधी ताकतों के विरुद्ध जनता को जाग्रत करेंगे। जिसकी शुरुआत के लिए सामयिक सरोकार रखने वाले प्रदेश के विद्वत, वरिष्ठ जन व कलमकार हमारे साथ अब “खबर सच है” के इ पोर्टल पर मंच साझा कर रहे है। हमें उम्मीद है कि हम “खबर सच है” के डिजीटल स्वरूप इ पोर्टल के माध्यम से पर्वतीय राज्य की अवधारणा को प्राप्त करने में अवश्य सफल हो सकेंगे।
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