खबर सच है संवाददाता
हल्द्वानी। हम सभी जानते है की 19वी शताब्दी की भारत की शिक्षा पद्धति जो की थोपी गई थी उसका इतिहास के साथ गहरा रिश्ता रहा है। जब भारत स्वाधीनता के लिए संघर्ष की रास्ते पर अग्रसर था और किसी ने सोचा नहीं था व्यापार के एक कंपनी जो भारत में आई थी वो भारत में शासन का मंसूबा बना डालेगी। 1757 में भागीरथी नदी के किनारे प्लासी के मैदान में जब बंगाल के नवाब को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने छल पूर्वक हरा कर अपने इरादों से सबको अवगत करवा दिया रही उम्मीद 1764 में बक्सर के युद्ध जो सबसे निर्णायक रहा था। जिसमे शाह आलम द्वितीय को भी छल पूर्वक परास्त किया था यहां समाप्त हो गई। इसके बाद भारत के लोगो पर बहुत जुल्म शुरू हुए। आते आते 19 वी शताब्दी तक छोटी मोटी क्रांतियां हुई परंतु उसका कोई बड़ा असर नहीं दिखा लेकिन एक बात अंग्रेजो को भली भांति पता लग चुकी थी की भारत को गुलाम बनाना इतना भी आसान नहीं है। उन्हे लगा की बिना भारत की संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा पर हमे आक्रमण किए सफलता नहीं प्राप्त होगी तब सुनियोजित ढंग से लार्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा को इस तरह बनाया जिस से भारत का नागरिक रक्त से भारतीय हो परंतु विचारो और नैतिकता से बिट्रिश बन जाए। इस कारण मैकाले को लोक शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त कर दिया गया था। जहां एक ओर भारत की शिक्षा पद्धति में सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामया का भाव प्रकट होता था, अब दुर्भाग्यवश ये रीति समाप्ति की ओर थी। अंग्रेजी सरकार की अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत भारत में शिक्षा की एक अलग नीव स्थापित कर रही थी। शिक्षा से भारत को दो टुकड़ों में बाटने की मंशा जिस से भारत में उच्च और मध्यम वर्ग को शिक्षित कर जनता और सरकार के मध्य सेतु निर्माण करना था। मैकाले की शिक्षा नीति से इस तरह की शिक्षा पद्धति निर्माण करना था जिस से खुद भारतीय ही अपनी सभ्यता, संस्कृति को तिरिस्कृत दृष्टि से देखने लगे और हीन भावना पैदा हो। हमारी भाषाओं को अविकसित बता कर अपमान किया जो मुख्य कारण बना हमारी भाषाओं के विकास की। अनेक वीरों के बलिदान और सदियों के संघर्ष के बाद देश आजाद हुआ परंतु शिक्षा पर बदलाव अब जरूरी सा लगने लगा जिस कारण देश के प्रत्येक हिस्से से शिक्षा को लेकर समान अधिकार की मांग उठी और 1948 को डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य शिक्षा के द्वारा राजनैतिक, शासन, व्यापार आदि क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाले वाले छात्रों का निर्माण करना मुख्य लक्ष्य में से एक था। 1952-1953 में माध्यमिक शिक्षा के ढांचे में सुधार के लिए मुदालियर शिक्षा आयोग गठित किया गया जिसमें की पाठ्यक्रम में विविधता और त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने की सिफारिश की गई थी। शिक्षा में सुधार को लेकर कई प्रकार के सुझाव लगातार आते रहे 1964 में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार देने के लिए दौलत सिंह कोठारी आयोग गठित हुआ फिर 1986 में नई शिक्षा नीति लागू हुई जिसकी सबसे बड़ी विशेषता थी की शिक्षा को समान अवसर देने के लिए क्षेत्रीय और मातृभाषा दोनो का उपयोग किया गया। 1992 में गठित यशपाल कमेटी जिसका मुख्य उद्देश्य छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पढ़ने वाले भार को कम करना था और साथ ही गुणवत्ता में सुधार करना था।
प्रत्येक शिक्षा नीति ने कुछ न कुछ दिया परन्तु समय के साथ साथ बहुत सारी चीज़ें बदलती है। तब जरुरते भी बदल जाती है और इन सभी के बिंदुओ पर विचार कर देश की शिक्षा नीति में भारतीयकरण लाया जा सके, सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाया जा सके और सभी छात्रों में सभी प्रकार की प्रकार की क्षमताओं बौद्धिक , शारीरिक और नैतिक विकास के लिए समग्र और बहुविषयक शिक्षा हो सके इस हेतु नई शिक्षा नीति 2020 को लाया गया। परंतु ये बात महत्वपूर्ण है की ये बहुविषयक शिक्षा प्रणाली की प्रथा हमारे देश में आज से नही बल्कि ये परंपरा प्राचीन है, पुराना इतिहास अगर देखे तो पता चलता है कि तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय से लेकर कई ऐसे व्यापक साहित्य प्रायः देखने को मिलते जो विभिन्न क्षेत्रों के विषयो के संयोजन को प्रकट करते है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की विशेषता जो इसको सबसे महत्वपूर्ण बनाती है इस नीति में धरातलीय क्रियान्वन के संदर्भ में बदलते भूमंडलीय परिदृश्य के सापेक्ष लैंगिक समानता की दृष्टि से समता मूलक समाज की परिकल्पना की गई है। सामाजिक आर्थिक रूप में मुख्य धारा से वंचित वर्ग को विभिन्न योजनाओं से लाभांछित करते हुए उत्तम गुणवत्ता युक्त शैक्षिक परिवेश का वातावरण प्रदान किया गया है। डिजिटल भारत के इस दौर में मुक्त एव दूरस्थ शिक्षा के अतिप्राथमिक संसाधनों से विषय मर्मग्यो के ज्ञान एव व्याख्यानों को तकनीकी द्वारा संचार क्रांति की सहायता से जन जन तक सरलता और सुगमता से उपलब्ध कराने की छूट और विभिन्न प्रकार से सुविधा प्रदान की गई है, भाषा भावो की अनुगामिनी होते हुए ज्ञान का प्रचार प्रसार कर सके इस हेतु राष्ट्रीय संस्कृति के अधिकाधिक प्रचार प्रसार हेतु भारतीय का एक ऐसा समेकित सुदृद्द मंच निर्मित किया गया है जो लोकल टू भोकल की अंतर्भावना को अपने भीतर समेटे हुए है। इसके साथ ही परंपरागत अरुचिकर जटिल एवम् रूढ़ पाठ्यक्रम के स्थान पर रुचिकर व रोजगारपरक प्रासंगिक ऐच्छिक अंतरसंकाय आधारित पाठ्यक्रम को विद्यार्थियों के सम्मुख वैकल्पिक आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है और मूल्यपरक गहन गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा मानदंडों के मानकों की परिसिमा में उच्च शिक्षण संस्थान विश्व स्पर्धा में उच्चतम पायदान प्राप्त कर सके इस हेतु भौतिक एवम मानवीय संसाधनों की आधारभूत संरचना तथा स्वर्णिम संतुलन को केंद्रित किया गया है। शिक्षा नीति को अलग अलग क्षेत्रों में प्रभावशाली रूप में उच्च शिक्षा के कुशल प्रशासन एवम सुगम संचालन हेतु त्वरित एवम पारदर्शी शासन व्यवस्था के आलोक में विक्रेंद्रित प्रणाली को बल प्रदान किया गया है। जिस से की स्थानीय एवम लघु इकाई के नियमावली की सीमा में रचनात्मक कार्यों की स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी साथ ही इसका प्रभाव उच्च शिक्षण संस्थानों के उत्तरोत्तर स्तरोनयन हेतु एक चरणबद्ध प्रक्रिया के द्वारा मान्यता के पुनर्मूल्यांकन की प्रणाली को आत्मसात कर विकसित राष्टो के लब्ध प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों के समक्ष ये शिक्षा नीति शैक्षिक उत्पादन वसुदेव कूटुंबम की भावना से ओत प्रोत होकर मानवीय दृष्टि से परिपूर्ण शोध अनुसंधान की दिशा मे देखने को प्रायः मिलेंगे, साथ ही नवाचार बहुविषयक पाठ्यक्रम की शिक्षा विद्यार्थियो को प्रदान करने से उन्हे ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से स्वम को जोड़ने के अवसर प्राप्त होंगे तथा संकाय व विषयो की बाध्यता के सीमित मकड़ जाल में उलझा आज का छात्र स्वयं को विश्व स्पर्धा में सच्चे मायनो में उभरते और बदलते भारत के नागरिक के रूप में प्रमाणित कर पायेगा जिससे परंपरागत भारतीय ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ते हुए तथ्य एवम तार्किकता के मंडिकांचन स्वर्णिम संयोग की सुंदर प्रस्तुति सजीव होती हुई दिखाई देगी,परंतु ये धरातल पर उतर सके इस हेतु सभी के लिए इस शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु जागरूक होकर आगे बढ़ना होगा