मां जगदम्बा की पूजा आराधना के साथ-साथ जन्म देने वाले माता पिता का भी सम्मान करें – श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

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रामनगर। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहां कि मां जगदंबा की पूजन आराधना के साथ-साथ जन्म देने वाले मां बाप का भी सम्मान करना चाहिए। उनका अनादर व अपेक्षा मत करना। मां बाप की सच्ची विरासत धन व जायदाद नही बल्कि प्रमाणिकता व पवित्रता है। बचपन में मां ने तुम्हें पाला बुढ़ापे में यदि तुमने ना संभाला तो याद रखो तुम्हारे भाग्य में भी भड़केगी ज्वाला। बचपन में अपने होते मां-बाप ने तुम्हें अनाथाश्रम मे नहीं रखा अब बुढ़ापे में तुम उन्हें वृद्धाश्रम में रखकर उस गलती की सजा दे रहे हो क्या? तुम अपने बच्चों से प्यार, सम्मान व सेवा चाहते हो तो जिनके तुम बच्चे हो वो भी चाहते होंगे। मां बाप के आशीर्वाद, बड़ों की सेवा व उनका सम्मान करने से आयु, विद्या, यश, बल स्वाभाविक मिलते हैं। ईश्वर की कृपा हमारे पास है, गुरु की कृपा हमारे पास है, लेकिन बड़ों के आशीर्वाद का महत्व भी कम नही है। जिन्होंने बचपन में बोलना सिखाया बुढ़ापे में उन्हीं की बोलती बंद करते हो। तुम्हारे कारण यदि तुम्हारी मां बाप की आंखों में दुख के आंसू आए तो सोच लो तुम्हारा सारा कर्म धर्म उन आंसूओ मे बह जाएगा। पत्नी मनपसंद मिल सकती है मां पुण्य से ही मिलती है पसंद से नहीं। दोनों की भावनाओं की कदर करना लेकिन पुण्य से मिलने वाली को पसंद से मिलने वाली के लिए मत ठुकराना। उन्होंने कहा की मां संसार में प्यार का साकार रुप ही होता है बिना मां का घर व घर बिना मां के दोनों ही संसार की बड़ी कारूणिक स्थितियाँ है। जीवन में अंधेरे पथ में सूरज बनकर रोशनी करने वाले मां बाप की जिंदगी में अंधकार मत फैलाना। आज तुम जो कुछ भी हो मां की बदौलत हो क्योंकि उसने तुम्हें जन्म दिया वह देवी है गर्भपात कराकर वह राक्षसी नही बनी वरना तुम कहां होते। दुनिया में विश्व की तमाम भाषाओं में जिसके गीत काव्य रचें गये है, वह तुम्हारे घर में है। अवतारों ने भी जिसकी सेवा आज्ञापालन व चरणों में नमन किया। क्या ग्रहण करता है बुद्धिमान वही कहलाता है जो व्यवहार करने से पूर्व विचार करता है। जबकि मूर्ख व्यक्ति व्यवहार के बाद विचार करता है उसे पश्चाताप, ग्लानि और हास्य का पात्र बनना पड़ता है। अपने विवेक को कभी खोना नहीं चाहिए। स्वंय सम्मान को प्रभु प्राप्ति का लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि सम्मान को लक्ष्य बनाने पर यदि सम्मान नहीं मिलता तो क्षुब्ध होना पड़ता है। विद्वान व्यक्ति अपनी संपूर्ण कामनाओं को संकुचित कर हर प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है। समस्त कामनाओं का परित्याग करके ही मनुष्य ब्रहम भाव को प्राप्त करता है। सत्पुरुषों का आचरण व कार्य सदैव अनुकरणीय होता है। 
 
महाराज श्री ने कहा कि किसी का तिरस्कार न करें जो भी देखें सुने या पढ़े उस पर विचार करें। किसी को नुकीले व्यंग्य बाण न चुभाये ऐसा कुछ ना बोलें जिससे किसी केआत्मसम्मान को ठेस पहुंचे। किसी का दिल दुखे या प्रेम,एकता,सदभाव नष्ट हो जाए, अशांति हो जाए, कलह क्लेश हो,या वैमनस्य पैदा हो जाए। हमारे हृदय उदार व विशाल होने चाहिए। आज मनुष्य का मस्तिष्क विशाल तथा हृदय सिकुड़ता चला जा रहा है। अकड़ या अभिमान नहीं होना चाहिए। अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि दुश्मन को हराने वाले से भी महान वह है जो उसे अपना बना ले यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु पदार्थ को पाना चाहता है उसके लिए प्रयास करता है और यदि बीच में थककर अपना विचार ना बदल दें तो उसे अवश्य प्राप्त भी कर लेता है। यदि व्यक्ति पुरुषार्थ करे तो ईश्वर भी उसकी सहायता करता है हनुमान जी का दर्शन करके ब्रहमचारी सत्य पक्ष के लिए हमेशा जान की बाजी लगा देने के लिए तैयार रहना दृष्टता के दामन में निस्वार्थ अथक प्रयास करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।  हनुमान जी की सी निश्चल स्वामी भक्ति, नारी जाति की रक्षा जो उन्होंने सीता माता की सुरक्षा के लिए और अपहरण से मुक्ति दिलाने के लिए की थी जैसे सद्गुणों तो हमें अपने अंदर उतारने चाहिए।  बल, शौर्य, साहस, कर्मठता, पराक्रम के देवता हैं। इनसे वही मांगा जा सकता है भगवान राम के दर्शन करके माता पिता के प्रति श्रद्धा,आज्ञाकारिता, भाई के प्रति स्नेह व सद्भाव, पत्नी के प्रति अनन्य प्रेम, दुष्टता से जूझने जैसे सदगुणों का प्रसाद हमें गहण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूतकाल से प्रेरणा लें, हो चुकी गलतियों को सुधारें, भविष्य के लिए योजनाएं चाहे बनाएं लेकिन वर्तमान में सीख लें। सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय वर्तमान ही है।
वर्तमान का ही उत्तम से उत्तम सदुपयोग करें। वर्तमान को छोड़कर मात्र भूत व भविष्य का चिंतन मूर्खता है। उन्होंने अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों से सभी हरि भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा तथा “श्री गुरु महाराज” “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैय्या” की  जय जय कार से गूंज उठा। महाराज श्री के दर्शन के लिए हल्द्वानी, काशीपुर, रुद्रपुर, धामपुर, मुरादाबाद ,बरेली, अल्मोड़ा, रानीखेत, नजीमाबाद, जसपुर, नैनीताल, दिल्ली आदि दूर दूर से बड़ी संख्या में हरि भक्त पहुंच रहे हैं।
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