रामपुर तिराहा कांड के दो आरोपित सिपाहियों को न्यायालय ने सुनाई अर्थदंड के साथ आजीवन कारावास की सजा

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देहरादून। रामपुर तिराहा कांड में देर से ही सही पर अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। अदालत ने दोनों आरोपित सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट में दोनों पर अर्थदंड भी लगाया है। रामपुर तिराहा कांड मामले में पीएसी के दो सिपाहियों पर 15 मार्च को दोष सिद्ध हो चुका था। 

अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की और दोनों दोषी सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोषियों पर 40 हजार रुपए अर्थदंड भी लगाया है। शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की पत्रावली में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अभियुक्त मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह पर दोष सिद्ध हुआ था। मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर की रात दमन और अमानवीयता के बीच ऐसी बीती कि दो दिन इतिहास में काले अध्याय के रूप में छप गए। ये वो समय था जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य की मांग कर रहे थे। उस वक्त ‘बाड़ी-मडुआ खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे’ जैसे नारे हवा में तैर रहे थे। आंदोलन को दिल्ली तक ले जाने के लिए 1 अक्टूबर को पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर कुछ आंदोलनकारी दिल्ली की तरफ रवाना हुए। पहले इन्हें रुड़की के नारसन बॉर्डर पर रोका गया, लेकिन जत्था आगे बढ़ गया फिर आंदोलनकारियों को तैयारी रामपुर तिराहे पर रोकने की तैयारी की गई। अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर आंदोलनकारियों और पुलिस में कहासुनी हुई कि तभी अचानक नारेबाजी और पथराव शुरू हो गया। इस पथराव में तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए। इसके बाद यूपी पुलिस ने क्रूरता से लाठीचार्ज किया और करीब ढाई सौ आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया गया। इसी झड़प के बीच कथित तौर पर पुलिस पर महिलाओं के साथ छेड़खानी और रेप के भी आरोप लगे, जिनमें बाद में कई सालों तक मुकदमा भी चला। इस बर्बरता खबर लगी तो करीब 40 बसों से आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे यहां फिर झड़प हुई। हालांकि 2 अक्टूबर 1994 के दिन मामला ज्यादा संघर्षपूर्ण स्थिति में पहुंच गया। इसमें यूपी पुलिस ने करीब 24 राउंड फायरिंग की जिसमें 7 लोगों की जान चली गई और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए।

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रामपुर तिराहा कांड के बाद आंदोलनकारियों का अलग पहाड़ी राज्य आंदोलन जोर पकड़ गया। 6 सालों तक चले इस लंबे संघर्ष के बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य  उत्तराखंड बना। इस रामपुर तिराहा कांड में कई पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई और फिर 1995 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। कांड में दो दर्जन से अधिक पुलिसवालों पर रेप, डकैती, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे मामले दर्ज हुए। साथ ही सीबीआई के पास सैकड़ों शिकायतें दर्ज हुई।

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