प्रस्तुति- नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता
डाॅ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म ५सितम्बर १८८० ई० मे टिरुट्टनी नामक कस्बे में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बी०रामा स्वामी था ।यह अपने यहाँ के जमींदार के यहाँ सामान्य नौकरी करते थे ।इनकी माता का नाम सीता झाँ था। यह अपने पिता जी के दूसरी संतान थे। यह आरम्भ से ही अध्ययन में विशेष रूचि रखते थे। इनके पिता कर्म काण्डी सनातनी ब्राह्मण थे ।किन्तु इनका अध्ययन इन्होने मिशनरी स्कूल में कराया था। वहीं इन्होने बाइबल के कई अंश याद कर लाए थे। जिसके लिए इन्हें पुरस्कृत भी किया गया था।इन्होने यह सिद्ध कर दिया था कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। यह सन्१९०२ मे मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों विवाह प्रायः छोटी अवस्था में ही हो जाया करता था, यह भी उस कुरीति से अछूते नहीं रहे। इनका विवाह सन्१९०३ मे शिवाकामू के साथ हुआ। उस समय इनकी अवस्था १६वर्ष तथा इनके पत्नी की अवस्था १०वर्ष थी तत्पश्चात् इन्होने दर्शनशास्त्र में परास्नातक तथा पी०एच०डी०की उपाधियाँ प्राप्त की तथा ४०वर्षों तक शिक्षण कार्य किया। यह भारतीय संस्कृति के संवाहक तथा प्रख्यात शिक्षाविद् थे। अपने व्याख्यानो के माध्यम से भारतीय दर्शन का विदेशों में प्रतिपादन करते रहे और सम्पूर्ण विश्व में इसका प्रचार प्रसार किया। पं०जवाहर लाल नेहरू के विशेष आग्रह पर इन्हें सोवियत संघ के विशेष राजनयिक का कार्यभार सौंपा गया, जिसे इन्होने बड़ी कुशलता से निभाया। भारत के संविधान निर्माताओं ने इन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य मनोनीत किया। सन्१९५२ मे यह भारतीय गणराज्य के प्रथम उप-राष्ट्रपति बने। सन् १९५४ में भारत सरकार के तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ०राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न से सम्मानित किया।
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डॉ०राजेंद्र प्रसाद के बाद यह भारतीय गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति का इनका कार्यकाल सन् १९६२-१९६७ तक रहा। अपने कार्यकाल में ही इन्होने आगे अपने कार्यकाल बिस्तार के लिए मना कर दिया था।लोगों के विशेष आग्रह पर भी यह अपनी बात पर अडिग रहे और दूसरा कार्यकाल स्वीकार नहीं किया। १७ अप्रैल १९७५ में लम्बी बीमारी के बाद चेन्नई में इनका निधन हो गया ।मृत्योपरांत अमेरिका द्वारा इन्हें १९७५ मे टेम्पलटेन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनके पुत्र डाॅ०एस०गोपाल ने सन् १९८९में इनकी जीवनी प्रकाशित की। इनका शैक्षणिक कार्य अत्यंत उत्कृष्ट रहा। इनका जन्म दिवश सम्पूर्ण भारत में बड़े उत्साह के साथ शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन का भारतीय संस्कृति के प्रति आगाध निष्ठा थी। वो भारत को शिक्षा के क्षेत्र में क्षितिज पर ले जाने को निरंतर प्रयासरत रहे। अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में समर्पित करने वाले डॉ राधाकृष्णन के ह्रदय में शिक्षकों के प्रति अगाध श्रद्धा भाव था । प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शिक्षकों के सम्मान के रूप में शिक्षक दिवस सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है।
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हर साल 5 सितंबर को देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह दिन डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में मनाया जाता है जो देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका जन्मदिन 5 सितंबर को ही पड़ता है। वह एक महान दार्शनिक, शिक्षक और विद्वान भी थे। आइये आज उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से जानते हैं…:-1. डॉ.राधाकृष्णन अपने छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। जब वह मैसूर यूनिवर्सिटी छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए जाने लगे तो उनके छात्रों ने उनके लिए फूलों से सजी एक बग्धी का प्रबंध किया और उसे खुद खींचकर रेलवे स्टेशन तक ले गए।
2. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद के नक्शे कदम पर चलते हुए स्वेच्छा से राष्ट्रपति के वेतन से कटौती कराई थी।
3. उन्होंने घोषणा की कि सप्ताह में दो दिन कोई भी व्यक्ति उनसे बिना पूर्व अनुमति के मिल सकता है। इस तरह से उन्होंने राष्ट्रपति को आम लोगों के लिए भी खोल दिया।
4. वह अमेरिका के राष्ट्रपति भवन ‘वाइट हाउस’ में हेलिकॉप्टर से अतिथि के रूप में पहुंचे थे। इससे पहले दुनिया का कोई भी व्यक्ति वाइट हाउस में हेलिकॉप्टर से नहीं पहुंचा था।
5. उपराष्ट्रपति के तौर पर राधाकृष्णन ने राज्य सभा सत्रों की अध्यक्षता की। जब कभी भी सदस्यों के बीच आक्रोश पाया जाता तो वे उनको संस्कृत या बाइबिल के श्लोक सुनाने लगते थे। इस तरह से वे सदस्यों को शांत कराते थे।
6. जब राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने तो दुनिया के महान दर्शनशास्त्रियों में से एक बर्टेंड रसेल ने काफी प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने कहा, ‘डॉ.राधाकृष्णन का भारत का राष्ट्रपति बनना दर्शनशास्त्र के लिए सम्मान की बात है और एक दर्शनशास्त्री होने के नाते मुझे काफी प्रसन्नता हो रही है। प्लेटो ने दार्शनिकों के राजा बनने की इच्छा जताई थी और यह भारत के लिए सम्मान की बात है कि वहां एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाया गया है।’
7. जब वह भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाना चाहा। उन्होंने जवाब दिया, ‘मेरा जन्मदिन मनाने की बजाए अगर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व की बात है।’ उनके सम्मान में तब से शिक्षक दिवस हर साल मनाया जाता है।
8. डॉक्टर राधाकृष्णन के पुत्र डॉक्टर एस. गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन किया जिसमें एस.गोपाल ने अपने पिता के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली। इस जीवनी में एस.गोपाल ने राधाकृष्णन के जीवन के एक रोचक वाक्ये का भी जिक्र किया है। इसके मुताबिक सह-अस्तित्व को लेकर चर्चे के बाद राधाकृष्णन ने माओ के गाल थपथपाए थे। माओ ने उनके इस भाव को सराहा था लेकिन माओ के इर्द-गिर्द खड़े लोगों को यह लोगों को अजीब लगा। यह देखकर राधाकृष्णन ने कहा, ‘चिंता मत करो, मैंने ऐसा स्टालिन और पोप के साथ भी किया है।’
9.1962 में ग्रीस के राजा ने जब भारत का राजनयिक दौरा किया तो डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उनका स्वागत करते हुए कहा था- महाराज, आप ग्रीस के पहले राजा हैं, जो कि भारत में अतिथि की तरह आए हैं। सिकंदर तो यहां बगैर आमंत्रण का मेहमान बनकर आए थे।
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