महान क्रान्तिकारी और शायर रामप्रसाद बिस्मिल

ख़बर शेयर करें -

प्रस्तुति- नवीन चन्द्र पोखरियाल, रामनगर (नैनीताल)

रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। रामप्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार और साहित्यकार भी थे। “बिस्मिल” उनका तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिंदी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कविताएं लिखते थे।जब कभी याद किया जाऐगा कि धर्म बडा कि देश,त्याग बडा कि वैभव तो सब को याद आऐगा सोऐ देश को धमाके से जगाने वाले पं.रामप्रसाद बिस्मिल, उनके अभिन्न हिस्सा अशफाकउल्ला खां,रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी आदि और उनके द्वारा घटित “काकोरी काण्ड” । जो एकदम युवा अवस्था में फांसी पर लटका दिए गए, उनका अफसोस था तो यही कि-

“आजाद हम करा न सके अपने मुल्क को।बिस्मिल”यह मुंँह खुदा को दिखाया ना जाऐगा।।”
“कदमबोसी को चलके,सर के बल आऐगी आज़ादी।तू मर मिटने की ख्वाहिश ऐ दिले-नादान पैदा कर ।।”

“मिटा दें फूट को निर्माण के जयघोष से ‘बिस्मिल,’ उसी सम्मान के आसन पे फिर माँ को बिठाऐ हम ।।”

तब काकोरी कांड की सुनवाई कोर्ट में चल रही थी। राम प्रसाद बिस्मिल के ख़िलाफ़ सरकारी वकील थे जगतनारायण मुल्ला। साजिशन बिस्मिल को केस लड़ने के लिए लक्ष्मी शंकर नाम का एक कमज़ोर वकील दिया गया। रामप्रसाद बिस्मिल नें वकील लेने से मना कर दिया और अपना केस ख़ुद लड़ने लगे। सुनवाई शुरु हुई….बिस्मिल कोर्ट में बोलने लगे… जज लुइस हैरान हो गया…इतनी कम उम्र और इतने विद्वतापूर्ण तर्क…।लुइस नें उनकी शानदार अंग्रेजी और कानूनी तर्क सुनकर पूछा, ” मिस्टर बिस्मिल आपने कानून की डिग्री कहाँ से ली है?” बिस्मिल बोले,” Excuse me sir! a king maker doesn’t require any degree!”  जज लुइस इस जवाब से चिढ़ गया..एक चार दिन के लौंडे की ये मज़ाल ? उसने बिस्मिल द्वारा १८ जुलाई 1927 को दी गयी स्वयं वकालत करने की अर्जी खारिज कर दी।  उसके बाद तो जो हुआ वो इतिहास है..
बिस्मिल नें अदालत में 76 पृष्ठ की तर्कपूर्ण लिखित बहस पेश कर दी जिसे पढ़ते ही जजों के होश उड़ गए…एक साधारण लड़का और इतना असाधारण विधिवेत्ता कैसे हो सकता है ?

यह भी पढ़े।

https://khabarsachhai.com/2021/05/31/ahilyabai-holkar/

आगे क्या कहूँ..बिस्मिल की जीवनी बताना इस लेख का उद्देश्य नहीं है। वो तो आप उनके वीरतापूर्ण कारनामें जानकर  खुद ही जान लेंगे। बल्कि आज अफ़सोस होता है कि आज़ादी के इतने साल बाद जिसने कभी कोई खेल नहीं खेला उसके नाम पर खेल का राष्ट्रीय पुरस्कार तो है। जो कभी कलाकार नहीं रहीं उनके नाम पर अंतरराष्ट्रीय कला संस्थान भी हैं..जो हाथ मे थर्मामीटर नहीं पकड़े उनके नाम पर सैकड़ों अस्पताल हैं। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि जिसने बिना लॉ की डिग्री लिए कोर्ट और समूची ब्रितानी हुकूमत को हिलाकर रख दिया उसको हम ठीक से याद करना तक भूल गए हैं..? याद करना तो दूर हम उनके बारे में ठीक से जानते तक नहीं हैं। क्या इस देश में एक “राम प्रसाद बिस्मिल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी” नहीं होना था ? होना था, ज़रूर होना था। लेकिन नहीं हुआ।

मैं कई बार सोचता हूँ और दुःखी होता हूँ कि एक देश नें अपने सच्चे नायकों को किस तरह बिसरा दिया…उनके बलिदान,शौर्य और पराक्रम का उचित सम्मान न किया।और इधर कैसे एक परिवार नें अपना नामकरण करके प्रतीकात्मक रुप से सड़क से लेकर आकाश तक अपना कब्ज़ा जमा लिया। अपने गाने-बजाने वाले पालक-बालक पाल लिए। और सबसे दुःख की बात तो यह है कि जिनको ये सवाल पूछना था उन्होंने आजादी के बाद इतने वर्षों में क्या किया…? कितना अच्छा होता..इस देश में आजादी के बाद एक राम प्रसाद बिस्मिल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी होती।उसमें पढ़ने वाला हर छात्र कठघरे में खड़े होकर लुइस के सामने बहस करनें वाले उस बिस्मिल को याद करता तो उसके रगों का खून जरा तेज हो जाता..।लेकिन ऐसा न हो सका..। हमने फ़र्जी प्रतीक गढ़ दिए। जिनका जिस चीजों से दूर-दूर तक नाता नहीं था उनको उस चीज का जनक बना दिया। हाँ कुछ बुद्धिजीवी आएंगे..पूछेंगे क्या होता नाम रख देने से..? होता है सर..नाम का बड़ा मनोवैज्ञानिक असर होता है..। अगर नही होता तो इस देश के संस्थानो पर एक परिवार का सबसे ज़्यादा कब्ज़ा न होता। मुगलों नें सारे शहरों का नाम नहीं बदल दिया होता…।
सौ साल पहले चलिए..जरा..एक उदाहरण दूँ। महामना जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनवा रहे थे.. तब उन्होंने दुनिया भर के श्रेष्ठ नामों को ख़त लिखा.. की आप आएं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ाएं। उन नामों आइंस्टीन भी थे और ओंकार नाथ ठाकुर भी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी थे और सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सर सुंदरलाल भी..!

आज मेरे जैसा संगीत का छात्र जब कभी बैठता है उस ओंकार नाथ ठाकुर ऑडिटोरियम में तो उनकी मूर्ति के सामने अनायास हाथ जुड़ जातें हैं.. एक बार लगता है कि ओह! क्या अद्भुत लोगों ने इन संस्थानो को सींचा है..जहाँ हम पढ़ रहें हैं.. कैसा होता अगर उस आडिटोरियम का नाम महामना के किसी रिश्तेदार के नाम पर रख दिया गया होता ? क्या वो भाव मेरे अंदर पैदा हो पाते ? जो ओंकार नाथ ठाकुर को देखते समय होता है। कत्तई नहीं। बल्कि ऐसा नामकरण ही मज़ाक होता…! ऐसा ही मजाक सत्तर सालों से हुआ है..अभी भी जारी है। और हम भूल गए हैं कि कौन था बिस्मिल,कौन थे असफाक, शचीन्द्र नाथ कौन थे.. हम बहस कर रहें हैं कि क्या आज़ाद ब्राह्मणवादी थे..भगत सिंह लेनिनवादी ?

Join our whatsapp group

https://chat.whatsapp.com/GNmgVoC0SrIJYNxO5zGt0F

Join our telegram channel:

https://t.me/joinchat/YsCEm7LVdWtiYzE1


हमने अपनी विरासत को एक सिरे से बिसराया है। और दोष हमारा क्या है.. साजिशन बिसराने दिया गया। वरना बिना डिग्री लिए जज के सामने बहस करने वाला बिस्मिल क्या किसी लॉ के स्टूडेंट के लिए सबसे बड़ा आदर्श नहीं होता ? लेकिन हमनें फेक हीरो बना लिए..कभी सोचकर देखिएगा.. एक नौजवान को आजादी के लिए ट्रेन लूटने का षड्यंत्र करके ब्रितानी हुकूमत की चूलें भी हिलानी हैं… और रात-रात भर जगकर साहित्य,इतिहास की दर्जनों किताबें भी लिखनीं थीं….और छापकर उन्हें बांटना भी था…। और आज़ादी के लिए न सिर्फ़ गीत लिखने हैं बल्कि शेरो-शायरी भी करनी है..कोर्ट में केस भी लड़ना है और अपनी वक़ालत भी करनी है।

कहतें हैं उसी काकोरी कांड के दौरान मुकदमा लखनऊ में चल रहा था। जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे। दुर्योग से उन्होंने अभियुक्तों के लिये “मुल्जिमान” की जगह “मुलाजिम” शब्द बोल दिया। फिर क्या था, पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने तपाक से जबाब दिया… “मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाये हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से; कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।”     आज बस दुःख होता कि आंधियों में चिराग़ जलाने वाला बिस्मिल फाँसी पर चढ़ गया…और उनके विरुद्ध खड़े अंग्रेज़ वकील और कांग्रेस नेता जगतनारायण मुल्ला कई पुश्त बना बैठे..। आजादी के बाद उनके बेटे आनंद नारायण मुल्ला स्वतंत्र भारत मे न्यायाधीश बने, इक़बाल सम्मान प्राप्त कर गए और कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा भी पहुँचे। जबकि दूसरी ओर एक गरीब माँ का देश भक्त बेटा भारत माँ की आज़ादी के लिए फांसी का फंदा चूमने से पहले अपनी माँ के लिए  लिखता है……

अपनी जीवनी मे बिस्मिल अपनी पूज्य माता जी के लिए लिखते है- इस संसार में मेरी किसी भी भोगविलास तथा ऐश्वर्य की इच्छा नहीं, बस एक तृष्णा है बस एक बार श्रद्धापूर्वक तुम्हारे चरणों की सेवा करके अपने जीवन को सफल बना लेता, किंतु ये इच्छा पूर्ण होती नही दिखाई पड़ती और तुम्हे मेरी मृत्यु का दुखपूर्ण संवाद सुनाया जाएगा!  माँ मुझे विश्वास है के तुम यह समझकर धैर्य धारण करोगी तुम्हारा पुत्र माताओं की माता भारत माता की सेवा मे अपने जीवन को बलिवेदी की भेंट कर गया और उसने तुम्हारी कुक्षि को कलंकित नहीं किया! अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ रहा जब स्वाधीन भारत का इतिहास लिखा जाएगा, तब उसके किसी एक पृष्ठ पर उज्वल अक्षरों में तुम्हारा भी नाम लिखा जाएगा! जो हमारे सुखी भविष्य के लिए फांसी पर झूल गए हमे इनकी माँ का नाम तो छोड़िए आज हमें उन्हें स्मरण करने का वक़्त नही है! देश को अंग्रेजी साम्राज्य से आज़ाद करवाने के लिए क्रांतिकारियों ने क्या क्या कष्ट उठाये आज के देश के सुविधाभोगी नेताओं को उनके कृतयज्ञतापूर्ण स्मरण के लिए उनके जीवन को अवश्य पढ़ना चाहिए।

हमारे पोर्टल में विज्ञापन एवं समाचार  के लिए कृपया हमें [email protected] ईमेल करें
या 91-9719566787 पर संपर्क करें ।

विज्ञापन


लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -

👉 हमारे समाचार ग्रुप (WhatsApp) से जुड़ें

👉 हमसे फेसबुक पर जुड़ने के लिए पेज़ को लाइक करें

👉 ख़बर सच है से टेलीग्राम (Telegram) पर जुड़ें

👉 हमारे पोर्टल में विज्ञापन एवं समाचार के लिए कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें या +91 97195 66787 पर संपर्क करें।

TAGS: birthday special Ramprasad Bismil

More Stories

सप्ताह विशेष

इंस्टाग्राम पर 30 लाख से अधिक लाइक्स के साथ वायरल फोटो, जिसमें फ्रूटी के लिए चश्मा लौटा दिया बंदर ने 

ख़बर शेयर करें -

ख़बर शेयर करें -खबर सच है संवाददाता बंदरों को चंचल और शरारती के रूप में जाना जाता है और इसका एक उदाहरण फिर से देखने को मिला जब एक बंदर एक व्यक्ति का चश्मा लेकर भाग गया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक उल्लासित वीडियो में, एक बंदर को पौधे के पिंजरे पर हाथ […]

Read More
सप्ताह विशेष

प्रेरणादायक व्यक्तित्व जिसनें देश और समाज हित के लिए त्याग कर दिया सुविधाओं का

ख़बर शेयर करें -

ख़बर शेयर करें – खबर सच है संवाददाता समय बदला और साथ-साथ राजनीति की तस्वीर भी बदल गई। पहले कर्मठ और ईमानदार जनसेवक जनता का प्रतिनिधित्व करते थे, लेकिन आज निहित स्वार्थों के लिए राजनीतिक प्रतिद्वंदिता चल रही है। छात्र संघ से लेकर सांसद व विधायकी तक, धन-बल के साथ खड़े नेता सिद्दांतों की तिलांजलि देकर […]

Read More
सप्ताह विशेष

घर की उत्तर दिशा होती है लाभदायी, इन चीजों को रखने से होती है धन-संपदा में वृद्धि

ख़बर शेयर करें -

ख़बर शेयर करें –  खबर सच है संवाददाता वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व है. घर में रखी कोई भी चीज तब तक फायदेमंद नहीं होती, जब तक वे सही दिशा और सही जगह न रखी गई हो. वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा कुबेर देवता की दिशा मानी जाती है. कहते हैं कि इस […]

Read More