खबर सच है संवाददाता
हरिद्वार। वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान, सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा की दिशा में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी न्यायालय ने ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने पूरे प्रदेश में एक नई मिसाल कायम कर दी है।
न्यायालय ने दस मामलों में उन बेटों को उनके माता-पिता की संपत्ति से तत्काल बाहर करने का आदेश दिया है, जिन्होंने अपने ही माता-पिता के साथ अमानवीय व्यवहार, मानसिक उत्पीड़न,अपमान और उपेक्षा जैसी हरकतें की थीं।
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा “यदि कोई संतान अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करती है, तो उसे उनके घर, चल – अचल संपत्ति अथवा किसी भी प्रकार के अधिकार पर कोई दावा नहीं रह जाता।” यह फैसला न केवल कानून की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के लिए भी एक सशक्त संदेश है कि माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को अब किसी प्रकार का संरक्षण नहीं मिलेगा।
न्यायालय ने कहा कि अब कोई भी बेटा यदि अपने माता-पिता के साथ अमानवीय बर्ताव करता है, तो प्रशासन ऐसे मामलों में तुरंत हस्तक्षेप करेगा और वरिष्ठ नागरिकों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाएगी। यह आदेश “वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007” की भावना के अनुरूप है, जिसके तहत माता-पिता अपने संरक्षण के लिए प्रशासन से सीधा न्याय पा सकते हैं।
इस निर्णय के बाद पूरे उत्तराखंड में वरिष्ठ नागरिकों के मन में एक नई न्यायिक सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना जागी है।विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला उन सैकड़ों वृद्ध माता-पिता के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा, जो अब तक संकोच या भय के कारण चुप्पी साधे हुए थे। अब उन्हें यह विश्वास मिलेगा कि कानून उनके साथ है।
यह फैसला समाज को यह सिखाता है कि “माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनकी उपेक्षा करने वाले न केवल नैतिक रूप से दोषी हैं, बल्कि अब कानूनन भी जवाबदेह होंगे।”
हरिद्वार उपजिलाधिकारी न्यायालय का यह ऐतिहासिक निर्णय आने वाले समय में वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।




