शिक्षा को उच्च स्तर तक ले जाने में प्राध्यापक को अपनी वास्तविक भूमिका समझने की आवश्यकता – डॉ सुरेंद्र पडियार  

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शिक्षको का छात्र राजनीति में हस्तछेप गंभीर चिंता का विषय
 
हमारी संस्कृति रही है गुरु को भगवान से अधिक पूज्य समझना, किसी भी देश की वास्तविक उन्नति उस देश के युवा निर्मित करते है परंतु युवाओं का बौद्धिक विकास, रचनात्मक विकास हो सके इसके लिए शिक्षा विराट भीम रूपी स्तंभ होता है और इसको मजबूती प्रदान करने की भूमिका एक शिक्षक की होती है। छात्र समाज का आधार है और समाज के विकास में इसका महत्व अत्यधिक है। शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए केवल सरकारी नीतियों और संसाधनों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है। शिक्षकों का समर्पण, मेहनत और उनकी प्रतिबद्धता ही शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठा सकती है। लिहाजा शिक्षकों को चाहिए कि वे न केवल पाठ्यक्रम को पढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें, बल्कि छात्रों के समग्र विकास पर भी ध्यान दें। छात्रों की व्यक्तिगत और शैक्षिक जरूरतों को समझते हुए उनके विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करें। शिक्षकों नवीनतम शिक्षण विधियों और तकनीकों से अवगत रहना चाहिए ताकि वे छात्रों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ सकें और छात्रों की समस्याओं का समाधान करते हुए उन्हें अपने लक्ष्यों को हासिल करने में प्रेरित कर सकें। शिक्षकों का मानसिक स्वास्थ्य और उनकी कार्य स्थिति भी शिक्षा के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक खुशहाल और समर्थ शिक्षक अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकता है। 
 
 
शिक्षकों की निरंतर मेहनत और प्रतिबद्धता से ही शिक्षा का स्तर ऊँचा उठेगा और समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा। साथ ही शिक्षकों के कुछ बेहतरीन और यूनिक कार्य, जो छात्रों के हित में हो सकते हैं, शिक्षकों को अपनी व्यक्तिगत कहानियाँ और अनुभव साझा करने चाहिए, जो छात्रों को संघर्ष और सफलता की प्रेरणा दे सकें। यह छात्रों को यह समझने में मदद करता है कि चुनौतियाँ केवल अस्थायी होती हैं और सफल होने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है। वास्तविक जीवन की समस्याओं पर आधारित प्रोजेक्ट्स और इवेंट्स का आयोजन करना, जैसे कि समुदाय सेवा या शैक्षिक भ्रमण जो छात्रों को कक्षा से बाहर सीखने के अवसर प्रदान करते हैं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करते हैं। कक्षा में इंटरएक्टिव और गेम-आधारित शिक्षण विधियों का प्रयोग करना, जैसे कि रोल प्ले या सिमुलेशन, जिससे शिक्षा को मजेदार और व्यावहारिक बनाया जा सके। शैक्षिक विषयों में कला, संगीत या नाटक का समावेश करना, जो छात्रों की सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करता है और पाठ्यक्रम को अधिक आकर्षक बनाता है। छात्रों को समस्याओं का सकारात्मक दृष्टिकोण से समाधान ढूंढने के तरीके सिखाना। उन्हें सिखाना कि कैसे असफलताओं को सीखने के अवसर के रूप में देखा जा सकता है।छात्रों की व्यक्तिगत रुचियों और क्षमताओं के आधार पर उन्हें विशेष मार्गदर्शन और कोचिंग प्रदान करना, जिससे वे अपनी स्ट्रेंथ को पहचान सकें और उन्हें निखार सकें।छात्रों को सार्वजनिक बोलने और नेतृत्व कौशल के अवसर प्रदान करना, जैसे कि स्कूल असेंबली या वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भागीदारी, ताकि वे आत्म-प्रस्तुति और नेतृत्व में दक्षता हासिल कर सकें। छात्रों को समाज के विविध मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए प्रेरित करना, जैसे कि पर्यावरण, समाजिक न्याय या वैश्विक समस्याएँ, ताकि वे एक जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बन सकें। इन कार्यों के माध्यम से शिक्षक न केवल छात्रों के शैक्षिक विकास को बढ़ावा देते हैं, बल्कि उनके सामाजिक, भावनात्मक और व्यक्तिगत विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन सब में शिक्षक और छात्र के बीच संबंध को और बेहतरीन बनाने की अति आवश्कता महसूस होती आई है। शिक्षक को छात्रों के व्यक्तिगत हितों, ताकतों और कमजोरियों को समझने का प्रयास करना, छात्रों की उपलब्धियों और प्रयासों को नियमित रूप से मान्यता देना और प्रशंसा करना एवं छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना से छात्रों में आत्म-मूल्यता और प्रेरणा बढ़ती है। किसी भी विवाद या समस्या के समाधान के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने के साथ ही शिक्षक को छात्रों के दृष्टिकोण को समझते हुए उचित समाधान प्रदान करना चाहिए। विशेष अवसरों पर छात्रों की उपलब्धियों का उत्सव मनाना, जैसे कि उनके जन्मदिन या अन्य व्यक्तिगत सफलताओं पर। यह छात्रों को महसूस कराता है कि वे विशेष हैं और उनके प्रयासों की कद्र की जाती है। कक्षा के बाहर भी जुड़ाव बनाए रखना, जैसे कि स्कूल की गतिविधियों, क्लबों या सामुदायिक परियोजनाओं में भाग लेना। इससे छात्र महसूस करते हैं कि शिक्षक उनके जीवन में एक निरंतर और व्यापक भूमिका निभाते हैं। शिक्षक को छात्रों के व्यक्तिगत मुद्दों और भावनात्मक जरूरतों के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। कक्षा में विभिन्न पृष्ठभूमियों, संस्कृतियों और विचारों का सम्मान और समावेशिता बनाए रखना, यह सुनिश्चित करता है कि सभी छात्रों को समान अवसर और समर्थन प्राप्त हो। इन प्रयासों से शिक्षक और छात्र के बीच एक मजबूत, विश्वासपूर्ण और सकारात्मक संबंध बन सकता है, जो शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के समग्र विकास को बढ़ावा देता है। आजकल अधिकांश देखा जाता है की शिक्षक छात्रों की राजनीति में हिस्सेदार बन गय है परंतु शिक्षको को छात्र राजनीति से दूर रहना बहुत आवश्यक है उसके कुछ मुख्य कारण हो सकते है क्योंकि शिक्षक की भूमिका शिक्षण और मार्गदर्शन की होती है, न कि राजनीतिक सक्रियता की। छात्र राजनीति में शामिल होने के कारण पेशेवर और नैतिक दायित्वों पर कई प्रभाव पड़ सकते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारण हैं कि क्यों शिक्षक को छात्र राजनीति से दूर रहना चाहिए: शिक्षक का मुख्य उद्देश्य छात्रों को निष्पक्ष और समावेशी शिक्षा प्रदान करना है। राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने से शिक्षक की तटस्थता पर सवाल उठ सकता है, जिससे छात्रों को विभिन्न विचारधाराओं और दृष्टिकोणों के प्रति निष्पक्ष शिक्षा मिलने में कठिनाई हो सकती है। शिक्षक को अपने पेशेवर आचरण में उच्च स्तर की ईमानदारी और नैतिकता बनाए रखनी चाहिए। राजनीतिक गतिविधियों में संलिप्तता से शिक्षक की प्रोफेशनल इंटेग्रिटी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, जो उनकी शिक्षण गुणवत्ता और पेशेवर छवि को प्रभावित कर सकता है।राजनीति अक्सर विवाद और मतभेदों को जन्म देती है। शिक्षक का राजनीति में शामिल होना कक्षा के माहौल को तनावपूर्ण और विभाजित बना सकता है, जिससे शिक्षा की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और छात्रों की भलाई प्रभावित हो सकती है। जब शिक्षक राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, तो इससे छात्रों में राजनीतिक दबाव और विभाजन की भावना पैदा हो सकती है। यह छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षिक प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। शिक्षक को अपनी भूमिका में पूर्ण रूप से भरोसेमंद और आश्वस्त होना चाहिए। राजनीतिक गतिविधियों में संलिप्तता से छात्रों में शिक्षक के प्रति विश्वास और सम्मान में कमी आ सकती है, जिससे शिक्षण संबंध प्रभावित हो सकता है।शिक्षक की राजनीतिक गतिविधियाँ उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को भी प्रभावित कर सकती हैं। इससे पेशेवर जिम्मेदारियों और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना कठिन हो सकता है, जो उनके शैक्षिक दायित्वों को प्रभावित कर सकता है। शिक्षक का प्राथमिक फोकस छात्रों के शैक्षिक और व्यक्तिगत विकास पर होना चाहिए। राजनीति में संलिप्तता से इस फोकस में विघ्न पड़ सकता है, जिससे शिक्षक की ऊर्जा और संसाधन प्रभावी ढंग से नहीं लग पाएंगे।शिक्षक को छात्रों के शैक्षिक उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राजनीति में शामिल होने से यह ध्यान भटक सकता है और शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
इन कारणों से, शिक्षक को छात्र राजनीति से दूर रहना चाहिए ताकि वे अपने पेशेवर दायित्वों को बेहतरी से निभा सकें और एक सकारात्मक, निष्पक्ष और समर्पित शैक्षिक वातावरण प्रदान कर सकें। इस प्रकार, वे छात्रों के समग्र विकास और शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
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