नए फ़ौजदारी क़ानूनों के जरिए मोदी सरकार जनता पर पुलिस राज कायम करना चाहती है – डा कैलाश पाण्डेय

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लालकुआं। भाकपा माले, मोदी सरकार द्वारा तीन नयी फ़ौजदारी संहिताओं – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम- जो कि आज से लागू हो गई हैं, के बारे में गंभीर चिंता प्रकट करते हुए मांग करती है कि मोदी सरकार इन तीन फ़ौजदारी क़ानूनों को लागू करने का निर्णय वापस ले और इन्हें संसद में पुनः पेश करे ताकि इनकी सही जांच परख हो सके और इनपर चर्चा हो सके। क्योंकि इन संहिताओं द्वारा मूलभूत नागरिक स्वतंत्रताएं, जैसे बोलने की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, किसी के साथ जुडने की स्वतंत्रता, प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता और अन्य नागरिक अधिकारों को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए कई कठोर प्रावधान किए गए हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है, यहां तक कि भूख हड़ताल को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है। ये सभी संहिताएं वैध असहमति और कानूनी उग्र लोकतांत्रिक प्रतिवादों को अपराध बनाने के संभावित औज़ार हैं। यह बात भाकपा माले के नैनीताल जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय ने जारी प्रेस बयान में कही।
 
उन्होंने कहा कि दूसरा इन संहिताओं में पुलिस को अनियंत्रित शक्तियां दे दी गयी हैं, जिनका देश में नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गिरफ्तारी के लिए बचावों का अनुपालन किए बगैर पुलिस को व्यक्तियों को निरुद्ध करने का कानूनी अधिकार दे दिया गया है। यह बाध्यकारी कर दिया गया है कि गिरफ्तार आरोपी का नाम, पता और अपराध की प्रकृति का हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय पर भौतिक एवं डिजिटल प्रदर्शन प्रमुख रूप से किया जाये। यह प्रावधान निजता के अधिकार और किसी व्यक्ति की मानवीय गरिमा के हनन के अलावा बिना औपचारिक दोष सिद्धि के ही व्यक्तियों को पुलिस द्वारा निशाना बनाए जाने को सुगम करता है। हथकड़ी लगाने को वैध बना दिया गया है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) दर्ज करने में पुलिस को विवेकाधिकार दे दिया गया है। सबसे हतप्रभ करने वाली बात यह है कि पुलिस अभिरक्षा की अवधि को वर्तमान 15 दिन से बढ़ा कर 60 या 90 दिन (अपराध की प्रकृति के अनुसार) कर दिया गया है, जो कि आरोपी व्यक्ति को धमकाए जाने, उत्पीड़न और खतरे में डालेगा। यह मोदी सरकार की देश को पुलिस राज की ओर धकेलने की दिशा में ले जाने की कोशिश है। पाण्डेय ने कहा यह भी चिंतनीय है कि इन संहिताओं में मनमानी और अमानवीय सजाओं का प्रावधान कर दिया गया है। हथकड़ी लगाने के अलावा तन्हाई जैसी अमानवीय सजा को वैधानिक मान्यता दे दी गयी है।
 
माले नेता ने कहा कि, जिस देश में फ़ौजदारी मामलों का जबरदस्त बैकलॉग (3.4 करोड़ मुकदमें लंबित) है, उसके बीच में इन तीन क़ानूनों को लागू करना, दो समानांतर कानूनी व्यवस्थाएं उत्पन्न करेगा, जिससे और बैकलॉग बढ़ेगा तथा पहले से अत्याधिक बोझ झेल रहे न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के अपराध न्याय ढांचे को सुधार की अत्याधिक जरूरत है, लेकिन तीन फ़ौजदारी कानून इसका जवाब नहीं हैं। वे अकारण ही हड़बड़ी में, बिना चर्चा या संसदीय परख के, ऐसे समय में पास किए गए जबकि 146 विपक्षी सांसद निलंबन झेल रहे थे। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार इन तीन फ़ौजदारी क़ानूनों को लागू करने का निर्णय वापस ले और इन्हें संसद में पुनः पेश करे ताकि इनकी सही जांच परख हो सके और इनपर चर्चा हो सके। नए क़ानूनों को गहन समीक्षा तथा अधिक व्यापक व जानकारीपरक आम सहमति की आवश्यकता है।
 
 
 
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