नयी चार श्रम संहिताएं मजदूरों के संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन करती हैं : के के बोरा
मोदी सरकार के लेबर कोड मजदूर वर्ग के बड़े हिस्से को बंधुआ मजदूरी जैसे हालात में धकेल देंगे : डॉ कैलाश पाण्डेय
हल्द्वानी। श्रम संहिताओं को लागू किये जाने के खिलाफ और श्रम शक्ति नीति 2025 को वापस लिए जाने की मांग करने के लिए मोदी सरकार द्वारा चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के खिलाफ ट्रेड यूनियन महासंघ (ऐक्टू) द्वारा बुद्धपार्क हल्द्वानी में श्रमसंहिताओं की प्रतियां जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया।
ऐक्टू के प्रदेश महामंत्री के के बोरा ने कहा कि, चार श्रम संहिताएं मजदूरों के संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन करती हैं। ये श्रम कोड जिसमें वेतन संहिता, 2019, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्त संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता, 2020- भले ही “श्रम सुधार” के नाम पर पेश की गयी हों पर ये अनिवार्य रूप से ऐसे औजार हैं जो “व्यापार करने की सुगमता” के आवरण के नीचे बड़े व्यवसाय और कॉरपोरेट हितों के मुनाफे के लिए आधुनिक गुलामी और शोषण को संहिताबद्ध करते हैं।
भाकपा माले नैनीताल जिला सचिव डॉ कैलाश पाण्डेय ने कहा कि मोदी सरकार के लेबर कोड मजदूर वर्ग के बड़े हिस्से को बंधुआ मजदूरी जैसे हालात में धकेल देंगे और ठेकाकरण की राह को और सुगम बना देंगे। इन श्रम संहिताओं का उद्देश्य और लक्ष्य बड़े कॉरपोरेट की मुनाफाखोरी को सुगम बनाने के लिए मजदूरों के अधिकार और सुरक्षा को छीनना है। कुल मिलाकर ये श्रम संहिताएं मोदी सरकार के उस प्रतिगामी और मजदूर विरोधी चरित्र का प्रतिबिंब हैं, जो इस देश के मजदूरों और मेहनतकश आवाम को खून चूसने के मतलब का समझता है तथा उन्हें और अधिक गुलामी जैसी स्थितियों में धकेलने की कोशिश कर रहा है।
श्रम कोड की प्रतियां जलाकर विरोध प्रदर्शन करने वालों में के के बोरा, डॉ कैलाश पाण्डेय, कमला कुंजवाल, दीपक कांडपाल, जोगेंद्र लाल, महेश तिवारी, मुकेश जोशी, अमित कुमार, नरेंद्र बानी, विवेक ठाकुर, सुमन बिष्ट, गणेश दत्त, आकाश भारती आदि शामिल रहे।
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