खबर सच है संवाददाता
गढीनेगी। श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर, प्रेमावतार, युगदृष्टा एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यथासंभव व्यर्थ के उलझाव व टकराव से सदैव बचने की कोशिश करें। संसार में किसी को छोटा तथा हीन समझकर कभी तिरस्कार ना करें। महानता के कार्य करें,लेकिन स्वयं को महान ना समझे। जिसमें जितना अधिक बड़प्पन आता है वह उतना ही विनम्र व सरल हो जाता है। अभिमान चाहे रूप, धन, ताकत, वैभव, जाति, पद आदि का कोई भी क्यों ना हो प्रभु प्राप्ति में सर्वाधिक बाधक है। मधुमक्खी की तरह गुण ग्राहक बनो। हर स्थान, घटना, क्रिया या परिस्थिति से कोई शिक्षा या प्रेरणा लें। दोष दूसरों के नहीं अपने देखें और सुधारें। प्रतिष्ठा के विरुद्ध कोई कार्य न करने का प्रयास करें। प्रिय सत्य ही सदैव बोलें। विचार करें कि आखिर ईश्वर ने हमारे आंख, कान, हाथ, पैर इत्यादि शरीर के अंगों को दो भागों में विभाजित क्यों किया? तथा जीभ एक ही क्यों रखी ? वाणी का सर्वाधिक महत्व है इससे शत्रुता को प्रेम में व प्रेम को शत्रुता में बदला जा सकता है। यह आदर भी व अनादर भी करा सकती है। स्पष्ट ,संतुलित, संयमित तथा मृदुभाषी बनें।
महाराज श्री ने अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में कहा कि मुक्ति मृत्यु के बाद नहीं जीवन के रहते ही प्राप्त करनी है। दोषों, विकारों, बुरे व्यसनों, अंधविश्वास, राग, द्वेष, वैर- विरोध मतभेद इत्यादि से जीवन रहते ही मुक्त होना है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष जीवन के चारों पुरुषार्थ प्रभु स्मरण करते हुए कर्तव्य परायण होकर प्राप्त करें। अपनी कुतर्क बुद्धि को दबाकर रखें। भक्ति तो भाव प्रधान है। भक्ति में मन, वाणी या बुद्धि से भी तर्क की गुंजाइश नहीं। ज्ञान में तर्क को स्थान हो सकता है कुतर्क को नहीं। ईश्वर ही सत्य है समस्त संसार मिथ्या है। परमात्मा को प्राप्त सत्पुरुष में दिखने वाले गुण भी सत् हैं। जैसे- सद्गुण, सद्भाव, सदविचार, सदव्यवहार, सत्यभाषण इत्यादि। जिसमें यह सब है वह सत्पुरुष है। अच्छा संग करो,अच्छा देखो,अच्छा बोलो,अच्छा सुनो, अच्छा विचारों सत्संग का जीवन में प्रत्यक्ष फल सेवन करते ही दिखाई देगा। जिनका जीवन कौए व बुगले जैसा है वे कोयल व हंस जैसे बन जाएंगे। उनकी वाणी में कोमलता, सुह्रदयता, मिठास इत्यादि होंगे व दिखावे से रहित, अंदर व बाहर से पवित्र विवेकशील बन जाएंगे।
उन्होंने कहा कि संत तो संतता के गुणों से हैं ना कि बाहरी वेशभूषा दिखावा इत्यादि से। साधु, भक्त या महात्मा बनकर जो लोगों को धोखा देते हैं वे स्वयं को धोखा देते हैं। अपना जीवन पापमय बनाते हैं। दूसरों का अहित चाहने वाले या करने वाले का कभी हित नहीं होता।पतन या पाप का कारण प्रारब्ध नहीं है बल्कि विवेक का अनादर करके कामना के वश में होने पर मनुष्य पापाचरण करता है तथा उसका पतन होता है। किसी भी स्थिति, अवस्था, प्राणी, पदार्थ, 8वस्तु आदि से जो सुख की आशा रखता है वह कभी सुखी नहीं हो सकता वह सदा निराश ही रहेगा व दुखी रहेगा। सच्चा सुख तो परमात्मा की शरण में ही है।
अपने धारा प्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा और श्री गुरु महाराज की जय, कामां के कन्हैया की जय, लाठी वाले भैया की जय जयकार से गूंज उठा। बताते चलें कि इस वर्ष 7 सितंबर को श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के पावन अवसर पर श्री हरि कृपा धाम आश्रम गढीनेगी में रात्रि 8 बजे से 12 बजे तक विराट धर्म सम्मेलन का आयोजन होगा । जिसमें स्थानीय, क्षेत्रीय व देश के विभिन्न भागों से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचेंगे ।