खबर सच है संवाददाता
2 नवंबर 1902 वह एतिहासिक दिन जब भारतीय संगीत को नई दिशा देते हुए भारत में पहला गीत और संगीत रिकॉर्ड हुआ और इसकी असल नायिका रही 19वीं सदी की सबसे महंगी तवायफ गौहर जान। भले ही गौहर जान एक दौर में मशहूर तवायफ रही लेकिन 19वीं सदी तक आते-आते वह गायिकी की क्वीन बन गईं, जिन्हें भारत की पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार के नाम से पहचाना जाने लगा। एक कलाकार के तौर पर ठुमरी और खयाल गायिकी में गौहर का कोई तोड़ नहीं था।
यह भी पढ़े।
https://khabarsachhai.com/2021/06/26/forced-conversion-of-a-young-man-who-returned-from-dubai/100 साल पीछे के इतिहास को खंगालेंगे, तो आपको अहसास होगा कि उस दौर में तवायफों को कितना सम्मान दिया जाता था। इन तवायफों के यहां बड़े से बड़े लोगोंं का उठना-बैठना उनके संगीत, गायिकी और नृत्य के दम पर ही होता था।
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गौहर का जन्म 26 जून, 1873 को आजमगढ़ में हुआ था। गौहर के जन्म का नाम एंजेलिना योवर्ड था। उनके पिता का नाम विलियम रोबर्ट योवर्ड और मां का नाम विक्टोरिया हेमिंग्स था। विक्टोरिया हेमिंग्स का जन्म भारत में ही हुआ था और वह यहीं पढ़ी-लिखी थीं। गौहर जान, विलियम और विक्टोरिया की इकलौती संतान थीं।
गौहर जान की जिंदगी बचपन से ही दुखों में कटी। जब वह 6 साल की थीं, तब उनके माता-पिता अलग हो गए। गौहर उस समय बच्ची ही थीं, लेकिन रोज होते माता-पिता के झगड़ें उन्हें परेशान करते थे। कहा जाता है कि गौहर की मां विक्टोरिया का विलियम के दोस्त खुर्शीद के साथ अफेयर था और दोनों के अलग होने की यही वजह भी रही। विलियम से अलग होने के बाद विक्टोरिया ने इस्लाम अपना लिया तबसे वह मलका जान कहलाई जाने लगीं और बेटी बन गई गौहर जान। विक्टोरिया, बनारस की नामचीन कथक डांसर और गायिका थीं। संगीत के गुर गौहर जान को मां से ही मिले थे। बनारस के बाद विक्टोरिया बेटी गौहर को लेकर कलकत्ता चली आईं। यहां गौहर ने हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक की शिक्षा ली और बहुत ही कम उम्र में उन्होंने संगीत की हर ताल को समझ लिया था।
लेखक विक्रम संपत की किताब “My Name is Gauhar Jaan : The Life and Times of a Musician” के अनुसार गौहर जान जब महज 13 वर्ष की थीं, तब उनके साथ रेप जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम दिया गया। जिसके चलते गौहर जान पूरी तरह टूट चुकी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत कभी नहीं हारी थी। एक संगीत ही ऐसी चीज थी, जिसने गौहर जान को इस दर्द से उभरने में मदद की। संगीत ने उन्हें इतना मजबूत बनाया कि वह देश-दुनिया में अपनी पहचान बना बैठीं। 15 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली सार्वजनिक परफॉर्मेंस दी। 1887 में उन्होंने दरभंगा राजा के सामने अपनी कला पेश की थी। राजा को गौहर जान का नृत्य और गायिकी इतने पसंद आए कि उन्होंने उन्हें अपने राजघराने में ही जगह दे दी। इसके बाद वह बनारस और कलकत्ता में रहीं और वहां कई महिलाओं को कला के क्षेत्र में निपुण किया। अपनी जिंदगी में कई खुशियों के साथ-साथ दुख झेलने वाली भारत की पहली रिकॉर्डिंग क्वीन 17 जनवरी, 1930 में दुनिया से रुखसत हो गई।
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