कहते है बड़े बोल और स्वयं की स्वार्थ सिद्धि लीडर ही नहीं वरन उसके नेतृत्व में खड़े लोगो को भी ले डूबती है और ऐसा ही उत्तराखण्ड में भी देखने को मिला। मै, मेरी बेटी, और पूर्व में मेरी पत्नी, हरदा (बेशर्मी से हारे हारदा) की राजनीतिक महत्वाकाक्षा का ही नतीजा है। पिछले चुनाव में भी एक नहीं दो-दो सीटों पर बेशर्मी का आवरण ओढे हारदा इस बार भी असंभावित सीट पर पूरा प्रदेश मेरा और मेरे… की सोच रख चुनाव लड़ने चलें, भूल गए की पहले ही दो-दो सीटों पर मुंह की खाई है। बेहतर होता की चुनाव न लड़ कर चुनाव लड़वाते और फिर बहुमत प्राप्त कर उप चुनाव के जरिये दिवा स्वप्न पालते, लेकिन हुआ क्या? हारदा की हठ घर बैठूंगा, तो अब घर के अलावा बचा ही क्या है। क्या 18 के आंकड़े को अब भी राजस्थान के होटल में नजर बन्द कर सरकार बनाने का दावा करोगे। या फिर स्वयं को मुख्यमंत्री बनाओगे।
बहरहाल 2017 ने आपको सबक दिया पर आप समझ नहीं पाए, अब 2022 पुनः आपको सीखाने आया है समझ जाओ, वरना कांग्रेस के पतन की आखिरी कहानी के नायक में आप ही का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा।