इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता….

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प्रसिद्व कूटनीतिज्ञ एवं दार्शनिक चाणक्य ने कहा था कि "जिस प्रकार जिह्वा के लिए परखे हुए शहद का स्वाद न लेना असंभव है,उसी प्रकार सत्ता से चिपके नेता के लिए जनता एवं विकास को नजरअंदाज कर राजस्व के अंश व सत्ता सुख का स्वाद न लेना असंभव है।" हमारा इतिहास बताता है कि रामायण-महाभारत कालों और मौर्य साम्राज्य तक में भ्रष्टाचार का प्रेत विद्यमान था। सल्तनत और मुगल काल के भ्रष्टाचार तो रहस्य-रोमांच की कथाओं जैसे लगते है, तो ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर ब्रिटिश शासन में तो भ्रष्टाचार एक उद्योग की तरह स्थापित हो गया, जो कमोबेश आज भी सामाजिक जीवन की निरंतरता के समानांतर चलता आ रहा है। भ्रष्टाचार के बदौलत ही एक सामान्य ब्यक्ति शाषक बन विशाल भौतिक साम्राज्य की स्थापना कर लेता है। ऐसा ही कुछ उत्तराखण्ड में देखने को मिला है। 5 साल तक प्रदेश की जनता को विकास के महज खोखले सपने दिखाते हुए सत्ता-सुख का आनंद लेने वाले भाजपा नेताओ के लिए इस चुनाव में मोदी और राम नाम का जिक्र जरूरी ही नहीं मजबूरी भी बन गया है। यही वजह है कि "जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे..." थीम सोंग के जरिये जनता की चौखट तक पहुँचने की जुगत में जुटे है।


5 साल के सत्ता सुख की अंगड़ाई लेकर अब चुनाव के वक्त जगे नेताओं को देखते हुए मुझे मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी की वो शायरी याद आती है "इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता, कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ।"

बहरहाल 70 विधानसभा सीटों पर शायद ही भाजपा का कोई उम्मीदवार होगा, जिसने प्रचार के दौरान धार्मिक आडम्बर और मोदी का सहारा न लेकर स्वयं के काम जनता के सम्मुख रख बोट की अपील की हो। हालांकि पीएम मोदी और राम नाम के जरिये चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं के दिलों में उतरने की प्रत्याशियों की इच्छा किस हद तक पूरी होगी, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।  

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