आपकी कोई भी क्रिया, चेष्टा, व्यवहार या कर्म ऐसा न हो जाए जिसे देखकर कोई उंगली उठाए। आपके जीवन में वांछित परिवर्तन भी आना चाहिए। अपनी गलतियों और बुराइयों को समझें व दूर करें। किसी को दोष क्यों देते हो अपनी अनेक आंतरिक दुर्बलताएं ही विनाश का कारण बनती है। उन्होंने कहा कि प्रेम पूर्वक की गई भक्ति से परमात्मा प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं।
उन्होंने कहा कि आत्मा व परमात्मा एक ही हैं मगर फिर भी अलग हैं। परमात्मा सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैैं और आत्मा उसके एक अंश में, परमात्मा का आत्मा के बिना अस्तित्व है मगर आत्मा का परमात्मा के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। परमात्मा का इस सृष्टि में सबसे एक ही नाता है भक्ति का। परमात्मा के लिए तो एकमात्र प्रेमपूर्ण भक्ति ही सर्वस्व है। भक्तिहीन मनुष्य ठीक उसी प्रकार है जैसे बिना जल के बादल, चाहे वह कितने ही उज्ज्वल क्यों न हो, मगर किसी के काम के नहीं होते। भक्तिहीन जीवन कितनी ही विशेषताओं से पूर्ण होने पर भी बेकार है। भक्तिमय मनुष्य परमात्मा को अत्यंत प्रिय होते हैं।
सेवा धर्म इतना सरल नहीं है जितना हमने इसे समझा है यह सबसे कठिन है परंतु असंभव नहीं है। यदि हम प्रभु स्मरण करते हुए प्रयास करें तो इस असंभव को भी संभव किया जा सकता है। मनुष्य महान है शक्ति का पुंज है सब कुछ कर सकता है। लेकिन सोया है, भुला है, परेशान है उसके जागते ही सब कुछ जग जाएगा।
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