खबर सच है संवाददाता
हल्द्वानी। स्वास्थ्य विभाग की नियमित कर्मचारी न होते हुए भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी लगन और मेहनत के बल पर बेहतर काम और सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए भारत की आशा कार्यकर्ताओं को डब्ल्यूएचओ ने सम्मानित किया है। आशा कार्यकर्ताओं को यह सम्मान ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने और देश में कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए दिया गया है। ऐसे अब आशा कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन और सरकारी कर्मचारियों का दर्जा देने, उन्हें सामजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए उनके कामकाज की स्थिति को बेहतर करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को तत्काल प्रभाव से केंद्रीय मंत्रिमण्डल में प्रस्ताव पारित करते हुए आशाओं को वास्तविक सम्मान देने की ओर बढ़ना चाहिए। यह बात ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पांडेय ने कही।
उन्होंने कहा कि, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक द्वारा देश की दस लाख आशा कार्यकर्ताओं को ‘ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’ से सम्मानित किए जाने के बाद देश के प्रधानमंत्री को ट्वीट करके बधाई देने जैसी औपचारिकता से आगे बढ़कर आशाओं की समस्याओं को हल करने की दिशा में कार्य करने की समयबद्ध घोषणा करनी चाहिए। प्रारंभ में मातृ शिशु सुरक्षा के काम के लिए तैनात की गई आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ बन चुकी हैं। स्वास्थ्य विभाग के सारे अभियान और सर्वे आशाओं द्वारा ही संचालित किए जा रहे हैं। कोरोना महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में आशा कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान रहा। जब सब घरों में कैद थे तब भी आशा कार्यकर्ता जान जोखिम में डालकर गाँव,शहर,कस्बों हर जगह घर-घर जा कर लोगों के बीच सुरक्षा उपकरण बांटने व कोविड-19 के प्रति जागरूकता अभियान चलाने का काम कर रही थीं। इसलिये आज समय आ गया है कि आशाओं के शानदार योगदान के महत्व को समझते हुए उनको स्वास्थ्य विभाग का स्थायी कर्मचारी घोषित किया जाय। डॉ कैलाश पांडेय ने कहा कि, पूरी दुनिया में आशाओं के काम की सराहना और का सम्मान हो रहा है, मोदी सरकार आशाओं को न्यूनतम वेतन और कर्मचारी का दर्जा देकर कब सम्मान देगी यह देखने वाली बात है। इससे इस सरकार के महिला सशक्तिकरण और महिला सम्मान के दावे में कितना दम है इसका भी खुलासा और परीक्षा अब हो जायेगी।