व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में अनर्गल बयानबाज़ी क्यों।

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संजय नागपाल – नैनीताल

क्या योगगुरु बाबा रामदेव को चर्चाओं में रहने का शौक है या फिर बाबा को सत्तासीनों से अपने घनिष्ठ
सम्बन्धों का गुमान है जिस कारण बाबा बार-बार बचकानीयत हरकत कर देते हैं। चुुुनाव के वक्त कभी बाबा देश में पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों पर राजनीतिक दल के लिए प्रचार करके कहते हैं कि यदि अमुक पार्टी को जिताओगे तो तेल मूल्य ₹35 प्रति लीटर आ जायेगा। कभी लोकपाल की नियुक्ति कानून के लिए बाबा जनप्रतिनिधि होने का दंभ भरते दिखते है और पुलिस कारवाही होते ही महिलाओं के वस्त्र पहन कर धरनास्थल से भाग जाते है। अब बाबा मुख्य चिकित्सा पद्यति, ऐलोपैथिक चिकित्सा को ही नकारने लगे है। बकौल बाबा कोई भी ऐलोपैथिक दवा इस पेंडमिक में काम नही कर रही है, एक-एक करके सभी एलोपैथिक दवाएं निष्प्रभावी होती जा रहीं हैं।
माना कि आयुर्वेद में बहुत शक्ति व सभी व्याधियों का उपचार बताया जाता है पर अब सुषेन वैद्य सरीखें उपचारक भी तो मौजूद नही। मैंने भी हरिद्वार ,कनखल स्थित पतंजलि पीठ में बैठे वैद्यों से अपने पिता का त्वचा स्वराइसिस का चार वर्ष ईलाज करवाया था। तब सुषेन वैद्य न होने से उन्हें आराम नही मिल पाया।अंततः मुझे दिल्ली स्थित चिराग इन्क्लेव में ऑल इंडिया मेडिकल साइंस से सेवानिवर्त हो चुके वरिष्ठ चिकित्सक डॉ पसरीचा की शरण में जाना पड़ा।जिससे उन्हें आराम भी मिला। यहाँ मेरा मक़सद किसी चिकित्सा पद्यति पर अविश्वास जताना नही है। लेकिन यह पूछना भी आवश्यक है कि स्वयं बाबा रामदेव भी अस्वस्थ होने पर एम्स क्यों जाते है..? जबकि उनके पास तो हर मर्ज की दवा है।

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क्या हर मामले में सरकार की चाटुकारिता करना व सत्तासीनों का समर्थन हासिल करना ही बाबा का मकसद बन गया है। विगत दिनों टूल किट मामले में भी बाबा रामदेव सत्ता पक्ष के समर्थन में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाए रहे।
कुल मिलाकर बाबा रामदेव ने ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को नकारने वाली बात छेड़ कर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। आईएमए ने पेंडमिक एक्ट 1987 की धाराओं के तहत उनकी शीघ्र गिरफ्तारी की माँग की है। जिस वक्त चिकित्सक अपनी जान की परवाह किये बिना कोविड-19 के मरीजों का उपचार कर रहे हैं, ऐसे समय मे साजिशन ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति की आलोचना करना व आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति द्वारा ही ईलाज संभव कहना कितना उचित है..?

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पहले भी बाबा रामदेव प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कोरोना की दवा ईजाद करने का दावा व “कोरोनिल किट”की घोषणा कर चुके है। उक्त दवा को आयुष मंत्रालय द्वारा अनुमोदित न किये जाने के कारण उनके वक्तव्य का विरोध होने लगा। जिसके कुछ दिनों बाद ही बाबा ने फिर से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर “कोरोनिल” को केवल इम्युनिटी बूस्टर बताया। लेकिन भारत सरकार के आयुष विभाग ने उन पर कोरोना की दवा ईजाद करने की झूठी घोषणा पर कोई वैधानिक कार्यवाही क्यों नही की। अब जबकि बाबा द्वारा ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति पर सवाल खड़े किए गए हैं और आईएमए ने उनकी शीघ्र गिरफ्तारी किये जाने की माँग सरकार से की है, तो बाबा अपने बचाव में बेवजह के सवाल और विवाद को तूल देकर भटकाने के प्रयास करने लगे है। बाबा के बिना वजह के सवाल से इस आपदाकाल में सेवारत चिकित्सक वर्ग अपनी जिम्मेदारियों से विरत हो जाए तो कौन जिम्मेदार होगा। क्या रामदेव एक बार फिर माफ़ी माँगकर पल्ला झाड़ लेंगे। क्योंकि जब सैयां भये कोतवाल,तो डर काहे का..यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि जिस चिकित्सा पद्यति से कोरोना महामारी का ईलाज चल रहा है उसी पर सवाल खड़े करना क्या देश की शान में गुस्ताख़ी नही है..?

(यह लेखक के स्वयं के विचार है)

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