प्रस्तुति-नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता
3 अगस्त 1886 को यूपी के झांसी जिला अंतर्गत चिरगांव में जन्मे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की आज पुण्यतिथि है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं।साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से प्रसिद्ध मैथिलीशरण गुप्त को ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी महात्मा गांधी ने दी थी। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई। 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित मैथिलीशरण गुप्त की जयन्ती (3 अगस्त) को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
कुर्ता-पजामा पहने और सर पर टोपी लगाए उनकी छवि हिंदी किताबों की अमिट स्मृति है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक के हिंदी-पाठ्यक्रम में जो छवि सदैव शामिल रही, वह महाकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ की ही थी। जिनकी छवि में जितनी सादगी और साधारणपन है, उतनी ही उनकी लेखनी असाधारण है। वह शब्द-शिल्प और भावों की प्रधानता के अग्रणी हैं जिनका अनुसरण कर कितनी ही पीढ़ियां स्वयं को साहित्य में संपादित कर सकती हैं।
“नर हो न निराश करो मन कोकुछ काम करो, कुछ काम करो,जग में रह कर कुछ नाम करो” यह जन्म हुआ किस अर्थ अहोसमझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।”मात्र कलम में ही नहीं बल्कि जीवन में भी गुप्त जी यह पंक्तियां चरितार्थ करते हैं। आशा-निराशा के तमाम भंवर का सामना करते हुए उन्होंने साहित्य को साकेत, यशोधरा और भारत-भारती जैसे महाकाव्य दिए।
Join our whatsapp group
https://chat.whatsapp.com/GNmgVoC0SrIJYNxO5zGt0F
Join our telegram channel:
https://t.me/joinchat/YsCEm7LVdWtiYzE1
मैथिलीशरण गुप्त ने देश में राष्ट्रभक्ति का संचार किया था। इन्होंने राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत विभिन्न रचनाएं लिखी थी। जिससे देश में राष्ट्रभक्ति का संचार हुआ। जिसके लिये महात्मा गांधी से आपको राष्ट्रकवि का सम्मान प्राप्त हुआ। मैथिलीशरण गुप्त ने राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत विभिन्न रचनाएं लिखी। जिसके लिये ये राष्ट्रकवि के रूप में जाने जाते हैं। मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम ‘सेठ रामचरण’ व माता का नाम ‘काशीबाई’ था। इनके पिता भी कविता किया करते थे। गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगांव, झांसी के राजकीय विद्यालय में हुई। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे झांसी के मेकडॉनल हाईस्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए भेजे गए, लेकिन वहां इनका मन नहीं लगा व दो वर्ष बाद ही घर पर इनकी शिक्षा का प्रबंध किया गया। फिर इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी व बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। मैथिलीशरण गुप्त ने काव्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी।
हमारे पोर्टल में विज्ञापन एवं समाचार के लिए कृपया हमें [email protected] ईमेल करें या 91-9719566787 पर संपर्क करें।
मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत “कौन करेगा निरीक्षण” यह रचना स्कूल, कॉलेज, देश में विभिन्न जगहों और दीवारों पर आज भी लिखी दिखाई देती है। जिसको पढ़कर लोगों में राष्ट्रभक्ति का संचार होता है। “जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।” मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि के सोपान तक पदासीन हुए। महात्मा गांधी ने इन्हें राष्ट्रकवि से सम्बोधित किया।उनकी मृत्यु 12 दिसंबर 1964 को हुई थी।
विज्ञापन