खबर सच है संवाददाता
गढीनेगी/काशीपुर। प्रेमावतार, युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने गुरुवार (आज) श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित भागवत शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि ‘भा’ यानी भाव सृजन करने वाली, ‘ग’ यानी गर्व को नष्ट करने वाली, ‘व’ यानी वर्ण व वर्ग भेद को समाप्त करने वाली एवं ‘त’ यानी तपस्चर्या परिपूर्ण जीवन जीने का संदेश देने वाला शब्द है। ग्रहस्थ को ही तपोवन बना लें। जंगलों, गुफाओं या हिमालय में तप हेतु जाने की आवश्यकता नहीं है।
गंगा व यमुना की तरह पवित्र भाव से आपस में मिले, जीवन में एक लक्ष्य हो, लक्ष्य की ओर निरंतर प्रयास हो। मनोबल, आत्मबल व आत्मविश्वास बरकरार रखें। परमात्मा का स्मरण करते हुए बाधा, कठिनाईयों, परीक्षाओं से न घबराते हुए निरंतर चले तो सफलता अवश्य ही क़दम चूमेगी। ऐसा मिलाप होने पर गंगा व यमुना की तरह एक बार मिलने के बाद कभी संबंध टूटने की कगार पर नहीं आएंगे। श्री राम भरत के मिलाप का उदाहरण देते हुए कहा कि भरत ने स्वयं को राम के रंग में पूरी तरह रंग लिया तो 14 वर्ष की तन की दूरी भी दिल से दूर नहीं कर पाई। वर्तमान में समाज में निरन्तर नैतिकता, राष्ट्रीयता व चरित्र का हो रहा हास, अत्याधिक चिंता का विषय हैं। धर्म विज्ञान सम्मत है ढकोसला नहीं, लोगों ने अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए इसे ढकोसला बनाने का प्रयास किया। धर्म से विज्ञान दूर होने पर ही ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास, रूढिवादिताओं को बढावा मिलता है। धर्मविहीन विज्ञान विकास का नहीं विनाश का कारण बनेगा। धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। देश को तोड़ने व बाटँने की जो घृणित व कुत्सित साज़िशें की जा रही हैं। उन्हें सफल नहीं होने देना है। राष्ट्र में सभी को सभी प्रकार के मतभेदों व संकीर्णताओं को त्यागकर आपसी प्रेम, एकता व सद्भाव को बनाए रखना हैं।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन की ही महिमा है कि वह अपने लिए, समाज के लिए व परमात्मा के लिए उपयोगी हो सकता है। त्यागपूर्वक शांत होकर अपने लिए, उदारता पूर्वक सेवा करके समाज के लिए व आत्मीयता पूर्वक प्रेम करके परमात्मा के लिए उपयोगी होता है। शांत उदार व प्रेमी भक़्त हो जाना यह मानव जीवन की महिमा है। जो शांत होगा वह उदार तथा ज़ो उदार होगा वह भक्त होगा। ऐसा जीवन ही पूर्ण जीवन है व ब्रह्मा का साक्षात्कार भी यही है। त्याग संसार का नहीं अपितु ममता, अहंकार, अधिकार, लोलुपता, आसक्ति आदि का करना है। परमात्मा अप्राप्त नहीं, नित्य प्राप्त है। मात्र प्राप्ति की स्मृति व जागृति के लिए निरन्तर सत्संग के प्रकाश में जीना है। सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो, जीवन में सफलता मिलेगी। महाराज श्री के दर्शनार्थ व दिव्य प्रवचनों को सुनने के लिंए स्थानीय, क्षेत्रिय व दूर दराज़ से काफ़ी संख्या में भक्त जन पहुँचे।अपने धाराप्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा व ”श्रीगुरु महाराज”, “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैया “की जय जयकार से गूंज उठा।
बताते चलें कि यहां श्री हरि कृपा आश्रम में महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में 15 फ़रवरी से 18 फ़रवरी तक विराट धर्म सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुँचने प्रारंभ हो गए है। कल 17 फ़रवरी को प्रातः 9 बजे रामचरितमानस पाठ प्रारंभ होगा तथा सांय 4 बजे से 6 बजे तक दिव्य प्रवचन। 18 फ़रवरी को प्रातः 8 बजे श्री हरेश्वर महादेव का महाभिषेक तथा 9 बजे रामचरितमानस पाठ सम्पूर्ण किया जाएगा। उसके बाद 10 बजे विराट धर्म सम्मेलन होगा जिसमें विश्व प्रसिद्ध भजन गायकों के भजन, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा महाराज जी के दिव्य प्रवचन होंगे। उसके बाद 1 बजे से विशाल भंडारे का भी आयोजन किया जायेगा।