माहौल भी था और मौका भी, लेकिन भितरघात का अवसर देकर शायद कांग्रेस ने पुनः एक बार फिर से बहुमत से पिछड़ते हुए बीजेपी को अवसर दे दिया सरकार बनाने का।
लालकुआं, कालाढूंगी सहित रामनगर सीट से बगावती सुरो को तूल देने के साथ पिछले चुनाव में दो सीटों से चुनाव की हार का ग्रहण हटाने कांग्रेस के मुखिया हरीश रावत स्वयं वहां से प्रत्याशी बन गए जहां उनको विरोधी पार्टी ही नहीं वरन अपनो से भी मुंह की खानी पड़ जाए।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव हेम भट्ट अब ब्राह्मण बोटो के साथ बसपा से हरीश रावत के सामने है तो रामनगर से टिकट नहीं मिलने के चलते हरीश रावत के कभी बहुत जिगरी रहें रणजीत रावत भी इस सीट पर ज्यादा नहीं पर हराने के लिए तो बेकरार रहेंगे ही। साथ ही इस शहर पर मुस्लिम बोटो पर मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व पालिका अध्यक्ष मोहम्मद अकरम तो पहले ही रणजीत रावत के समर्थन में कह चुके है कि अगर रणजीत रावत को टिकट नहीं मिला तो वह भी इस क्षेत्र से प्रत्याशी होंगे। हालांकि हम हरीश रावत जी के साथ ही सभी प्रत्याशियों को शुभकामनाएं देते है कि वह अपने चुनाव अभियान में सफल रहें और उत्तराखंड के उज्ज्वल भविष्य के सहगामी बने।
बहरहाल चाहे किसी भी परिस्थिति में कांग्रेस चुनाव कैम्पेनिंग के मुखिया एवं कांग्रेस पार्टी के वर्तमान में खास चेहरे हरीश रावत को रामनगर से विधानसभा चुनाव लड़ने की जिद रही, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि उनका यह निर्णय उनके पिछले परिणाम की पुनरावृत्ति कर रहा।