प्रस्तुति – नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता
आज जिन्हें सम्पूर्ण विश्व में माँ अमृतानन्दमयी के नाम से जाना जाता है, उनका जन्म 27 सितम्बर, 1953 को केरल के समुद्र तट पर स्थित आलप्पाड ग्राम के एक अति निर्धन मछुआरे परिवार में हुआ। वे अपने पिता की चौथी सन्तान हैं। बचपन में उनका नाम सुधामणि था। जब वे कक्षा चार में थीं, तब उनकी माँ बहुत बीमार हो गयीं। उनकी सेवा में सुधामणि का अधिकांश समय बीतता था। अतः उसके बाद की उसकी पढ़ाई छूट गयी। सुधामणि को बचपन से ही ध्यान एवं पूजन में बहुत आनन्द आता था। माँ की सेवा से जो समय शेष बचता, वह इसी में लगता था। पाँच वर्ष की अवस्था से ही वह कृष्ण-कृष्ण बोलने लगी थीं। इस कारण उन्हें मीरा और राधा का अवतार मानकर लोग श्रद्धा व्यक्त करने लगे।
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माँ के देहान्त के बाद सुधामणि की दशा अजीब हो गयी। वह अचानक खेलते-खेलते योगियों की भाँति ध्यानस्थ हो जाती। लोगों ने समझा कि माँ की मृत्यु का आघात न सहन कर पाने के कारण उसकी मानसिक दशा बिगड़ गयी है। अतः उसे वन में निर्वासित कर दिया गया। पर वन में सुधा ने पशु-पक्षियों को अपना मित्र बना लिया। वे ही उसके खाने पीने की व्यवस्था करते। एक गाय उसे दूध पिला देती, तो पक्षी फल ले आते। यहाँ सुधा ने प्रकृति के साथ समन्वय का पाठ सीखा कि प्रकृति का रक्षण करने पर वह भी हमें संरक्षण देगी। धीरे-धीरे उसके विचारों की सुगन्ध चारों ओर फैल गयी। लोग उन्हें अम्मा या माँ अमृतानन्दमयी कहने लगे। जब कोई भी दुखी व्यक्ति उनके पास आता, तो वे उसे गले से लगा लेतीं। इस प्रकार वे उसके कष्ट लेकर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार उसमें कर देती हैं। इससे वह हल्कापन एवं रोगमुक्त अनुभव करता है। हजारों लोगों को हर दिन गले लगाने के कारण लोग उन्हें ‘गले लगाने वाली सन्त’ (Hugging saint) कहने लगे हैं।
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एक पत्रकार ने उनसे गले लगाने का रहस्य पूछा, तो वे हँसकर बोली – माँ अपने बच्चों को गले ही लगाती है। इसी से बच्चे के अधिकांश रोग-शोक एवं भय मिट जाते हैं। उसने फिर पूछा- यदि आपको दुनिया का शासक बना दिया जाये, तो आप क्या करना पसन्द करेंगी। अम्मा का उत्तर था – मैं झाड़ू लगाने वाली बनना पसन्द करूँगी; क्योंकि लोगों के दिमाग में बहुत कचरा जमा हो गया है। वह पत्रकार देखता ही रह गया। अम्मा ने निर्धनों के लिए हजारों सेवाकार्य चलाये हैं। इनमें आवास, गुरुकुल, विधवाओं को जीवनवृत्ति, अस्पताल एवं हर प्रकार के विद्यालय हैं। गुजरात के भूकम्प और सुनामी आपदा के समय अम्मा ने अनेक गाँवों को गोद लेकर उनका पुनर्निर्माण किया।
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यद्यपि अम्मा केवल मलयालम भाषा जानती हैं; पर सारे विश्व में उनके भक्त हैं। वे उन सबको अपनी सन्तान मानती हैं। जब 2003 में उनका 50 वाँ जन्मदिवस मनाया गया, तो उसमें 192 देशों से भक्त आये थे। इनमें शीर्ष वैज्ञानिक, समाजशास्त्री, पर्यावरणविद, मानवाधिकारवादी सब थे। वे अम्मा को धरती पर ईश्वर का वरदान मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने कार्यक्रमों में तीन बार अतिविशिष्ट वक्ता के रूप में उनका सम्मान किया है। शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उनकी अमृतवाणी से सारे धर्माचार्य अभिभूत हो उठे थे। ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे, जिससे वे अमृत पुत्रों के सृजन में लगी रहें।
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