प्रस्तुति – नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता
“सैनिक वेश धरे रानी, हाथी पर चढ़ बल खाती थी।दुश्मन को गाजर मूली-सा, काटे आगे बढ़ जाती थी।””मुगलों की गुलामी और कायरता के कलंक के साथ जीने से अच्छा युद्धभूमि में मृत्यु का वरण करना श्रेष्ठ है। यह शब्द कहते हुए वीरांगना रानी दुर्गावती ने ऐलान किया था “या तो हम जीतेंगे या वीरों की तरह लड़ते हुए मृत्यु का वरण करेंगे।” आज रानी दुर्गावती की जन्म जयंती है।
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भारत नाम से पुरुष तत्व का बोध जरूर होता है पर वीरांगना माँ दुर्गावती जैसी बेटियों के सम्मान में ही इस राष्ट्र को भारत माता कहकर संबोधित किया गया है। रानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की शासक थीं जो भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में एक हैं। वीरांगना महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एक मात्र संतान थीं महोबा के राठ गांव में 5 अक्टूबर 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया था। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपतशाह से विवाह करके उन्हें अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया उस समय दुर्गावती की गोद में मात्र तीन वर्षीय संतान नारायण ही था। अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। तत्कालिक समय में वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र हुआ करता था उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाई उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल का निर्माण करवाया।
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दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना साम्राज्य इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थी। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य उनके देवर सहित कई लोगों की आंखों में चुभ रहा था। मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया पर हर बार वह पराजित हुआ। धन संपन्न गोंडवाना साम्राज्य पर अकबर की भी नजर थी। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां को गोंडवाना राज्य पर हमला करने के लिए भेजा। आसफ खां गोंडवाना के उत्तर में कड़ा मानकपुर का सूबेदार था। आसफ खां ने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया एक बार तो आसफ खाँ को रानी ने युध्द में हरा दिया। पर अगली बार उसने दुगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोल दिया। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।
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इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये। रानी की भी अपार क्षति हुई। रानी उसी दिन अंतिम निर्णय कर लेना चाहती थीं। अतः भागती हुई मुगल सेना का पीछा करते हुए वे उस दुर्गम क्षेत्र से बाहर निकल गयीं। तब तक रात घिर आयी वर्षा होने से नाले में पानी भी भर गया। अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोल दिया। अपना पक्ष कमजोर होते देख जिन इतिहासकारों ने अकबर की महानता में कसीदे गढ़े हैं दरसल उन इतिहासकारों ने अकबर की क्रूरता, उसके वासनामयी कृत्यों व अत्याचारों को बड़ी ही चालाकी से छुपा दिया। सुनियोजित ढंग से उन्होंने अकबर के चरित्र के सिर्फ एक पक्ष का ही वर्णन किया ताकि भारत के छद्म सेकुलरिज्म को मजबूत किया जा सके। अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला आज रानी का पक्ष दुर्बल था। अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया। रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंत में रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं।
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गढ़मंडला की इस जीत से अकबर को प्रचुर धन की प्राप्ति हुई उसका ढहता हुआ साम्राज्य फिर से जम गया इस धन से उसने सेना एकत्र कर अगले 3 वर्ष में चित्तौड़ को भी जीत लिया था। जबलपुर के पास जहां ऐतिहासिक युद्ध हुआ था वहां रानी की समाधि बनी है देशप्रेमी वहां जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। रानी दुर्गावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती पर डाकचित्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, रानी दुर्गावती अभ्यारण्य, रानी दुर्गावती सहायता योजना, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, रानी दुर्गावती महिला पुलिस बटालियन आदि न जाने कितनी कीर्ति आज बुन्देलखण्ड से फैलते हुए सम्पूर्ण देश को प्रकाशित कर रही हैं। महारानी दुर्गावती की वीरता, त्याग और बलिदान पर हम भारतीयों को गर्व है।
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अदम्य साहस,पराक्रम एवं शौर्य की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी दुर्गावती जी की जयंती पर शत-शत नमन! आपकी वीरता व त्याग समस्त नारी शक्ति का गौरव है। आपका कृतित्व सदैव प्रेरणा देता रहेगा।महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी की जन्मजयंती पर उन्हें कृतज्ञता पूर्वक शत शत नमन, वंदन करते हैं।
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