खबर सच है संवाददाता
चम्पावत। चरितार्थ है कि “मुश्किलों से कह दो उलझे नहीं हमसे, हमें हर हालात में जीने का हुनर आता है” ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के ग्रामीण आँचल चंपावत के छोटे से गांव में देखने को मिला है, जहां पढ़ने की उम्र में मजदूरी और ऊंचा मुकाम हासिल करने का शोभा का सपना की यह खबर भले ही सामान्य सी लगे पर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारे को आइना अवश्य दिखाती है।
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क्योंकि दसवीं में पढ़ने वाली बालातड़ी गांव की शोभा भट्ट जिसे सिर्फ दिव्यांग पिता ही नहीं वरन माँ के बीमार होने के चलते अब घोड़ा चलाकर घर की जिम्मेदारियों का निर्वहान करना पड़ रहा है।
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बताते चले कि बालातड़ी की शोभा बीते दो साल से घोड़े में सामान लाद कर परिवार का भरण पोषण कर रही है। शोभा के पिता हीरा बल्लभ भट्ट भी घोड़े में सामान लाद कर परिवार चलाते थे। दो साल पूर्व पिता को मिर्गी के दौरे पड़ना शुरू हुए। कई बार इलाज कराने के बाद भी पिता की बीमारी ठीक नहीं हो सकी। इसी दौरान मां पार्वती देवी भी बीमार रहने लगी। जिसके बाद परिवार में अकेली होने की वजह से उसने पढ़ाई के साथ ही घोड़े में सामान लाद कर मजदूरी करना शुरू किया। शोभा नदी से रेत ढोने के साथ ही भिंगराड़ा बाजार से राशन समेत अन्य सामान भी गांव पहुंचाती हैं।
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