महाराज श्री की वचनावली में “लाठी वाले भैया की” जय जय कार से गूंज उठा पूरा पंडाल
रामनगर। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहां श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जीवन की ही महिमा है कि वह अपने लिए, समाज के लिए, व परमात्मा के लिए उपयोगी हो सकता है। त्याग पूर्वक शांत होकर अपने लिए उदारता पूर्वक सेवा करके समाज के लिए आत्मीयता पूर्वक प्रेम करके परमात्मा के लिए उपयोगी होता है। शांत, उदार व प्रेमी भक्त हो जाना यह मानव जीवन की ही महिमा है। जो शांत होगा वह उदार तथा जो उदार होगा वह भक्त होगा। ऐसे जीवन ही पूर्ण जीवन है व ब्रह्मा का साक्षात्कार भी यही है। त्याग संसार का नहीं अपितु ममता, अहंकार, अधिकार, लोलुपता, आसक्ति आदि का करना है। आग्रह, दुराग्रह, संग्रह, परिग्रह, निग्रह इन पांचों ग्रहों के रहते प्रभु का अनुग्रह नहीं मिलता। इन पांचों से स्वयं विचार पूर्वक मुक्त हो सकते हैं। अन्य साधन से नहीं। दूसरों के कर्तव्य पालन की चिंता ना करके अपना कर्तव्य पालन करें। दूसरों के बारे में सोचना ही है तो सर्वहितकारी चिंतन करें। किसी के भी जीवन में अशांति,वेदना,दुख, कलेश ना रहे। दूसरों के दोषों का चिंतन तो कदापि ना करें। निष्कामता के ऐश्वर्या से, निर्विकारता के सौंदर्य से व आत्मीयता के माधुर्य से जिनका जीवन भरा है उनसे अधिक ऐश्वर्यावान, सौंदर्यवान व माधुर्यवान और कौन होगा ?
महाराज श्री ने कहा कि दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले का अपना ही नुकसान होता है यदि दूसरा हमें नुकसान पहुंचाए तो हम बचाव की स्थिति अपनाएं। आक्रामक दृष्टि ना होने दें, क्षमाशील बने। क्षमा कायरो का नहीं अपितु वीरों का आभूषण है। मानव पर जगत व जगतपति दोनों का अधिकार है लेकिन मानव का इन पर अधिकार मानना अज्ञानता है। जगत की चिंता करें जगतपति। जगत को सुधारने की चिंता यदि हम करें तो जगत सुधरेगा या नहीं पर हम जरूर बिगड़ जाएंगे। समाज सुधारक नहीं, समाज सेवक बनने का प्रयास करें। गंगा,गाय, गीता, गायत्री, गोविंद ये पांच भारतीय संस्कृति की महान धरोहर है। अन्य देशों के विचारकों ने भी इसको स्वीकार किया है, और वह उसे अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। परंतु हम भारतवासी सहज में प्राप्त इन सभी का महत्त्व न समझकर इनके लाभ से वंचित रह रहे हैं। यदि हम इन पांचों में से किसी एक की भी शरण ले लें तो मानव का कल्याण सुनिश्चित है। वर्तमान में समाज में निरंतर नैतिकता, राष्ट्रीयता व चरित्र का हो रहा हास्य अत्यधिक चिंता का विषय है। थोड़ा विचार करके देखें कि इस राष्ट्र के विकास में इसकी आजादी को बरकरार रखने में, शांति का साम्राज्य स्थापित करने में आपका क्या योगदान है ? समय रहते जागरूक होने की आवश्यकता है अन्यथा बाद में पश्चाताप के अलावा कुछ शेष नहीं रह जाएगा। वर्तमान में देश की जो दशा दिखाई दे रही है वह बहुत ही चिंताजनक है। देश को तोड़ने व बांटने की जो घृणित व कुत्सित साजिश की जा रही है। उन्हें सफल नहीं होने देना है। राष्ट्र में सभी को सभी प्रकार के मतभेदों व संकीर्णताओ को त्यागकर आपसी प्रेम, एकता व सद्भाव को बनाए रखना है। देश की अमूल्य व महान संस्कृति के महत्व को समझे व उसे जीवन में अपनाएं। पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण त्यागें। शांति को जीवन में प्रमुखता से स्थान दें। उठो, जागो व अपने लक्ष्य की ओर बिना रुके तब तक चलते रहो जब तक कि तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए। शास्त्रों का भी यही उद्घोष है, मार्ग में आने वाली परीक्षाओं,बाधाओं व कठिनाइयों से बिना घबराए प्रभु स्मरण करते हुए चलते रहो। तीर्थस्थलों, उपासना स्थलों, प्राकृतिक रमणीय स्थलों, हिमालय इत्यादि में शांति मिलती है। लेकिन उस शांति को बरकरार रखना या ना रखना हमारे ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का स्मरण मात्र मुख से नहीं साथ ही हृदय से यदि हो तो विशेष लाभदायक होता है। धर्म से, गुरु या किसी संत से अथवा परमात्मा से यदि आप जुड़े हैं तो आपका और भी अधिक उत्तरदायित्व हो जाता है कि आपके आचरण,स्वभाव, खानपान,वाणी, संगति आदि और भी श्रेष्ठ हो।उन्होंने अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों से सभी हरि भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा तथा ” श्री गुरु महाराज” “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैया” की जय जय कार से गूंज उठा।