खबर सच है संवाददाता
रुद्रपुर। सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वारा ‘प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं पेटेंट’ विषय पर आज प्रथम दिन दो दिवसीय सेमिनार आयोजित हुई। कार्यक्रम के संयोजक एवं आईपीआर सेल के नोडल प्रो मनोज कुमार पांडेय ने कहा कि पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी के 448764 भरातीय ज्ञान सूत्रों के तमाम यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद के बाद कुछ भारतीय ज्ञान की सुरक्षा हो सकी। उन्होनें डिजिटल ज्ञान कोष के आने के बाद 250 के लगभग पेटेंट के रद्द होने की बात बताई। विद्यालय के प्राचार्य ने सेमिनार के सफलता की कामना करते हुए पेटेंट की महत्ता पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला में डॉ. आशुतोष भट्ट ने इनोवेशन और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के परिप्रेक्ष्य में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा मानव ने अपने नवाचार और आविष्कारों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नए-नए कारणों की खोज की है और इससे हमारे सामने विश्व के तत्वों का विस्तृत अध्ययन आया है। डीआईएच 4.0 के परिचय देते हुए बताया कि उद्योग और नवाचार कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिसमें आईओटी, इंटरनेट का थान, स्मार्ट कार्यक्रम, और हास इन थे इंडियन हिमालय एनवायरनमेंटल विषय पर विस्तारित बातचीत की गई। डॉ. तन कुमार ने अपना अनुभव और वाइड एडवाइज़ ऑफ वाइड एंड हर्बल इन इंडियन हिमालय एनवायरनमेंटल विषय पर प्रस्तुत करते हुए कहा कि पहाड़ में होने वाले विभिन्न फल जैसे काफल, हिमालयी अकींचन, आदि का उपयोग हम खाने के अलावा भी रंगों और विभिन्न उपादानों में कर सकते हैं। इससे आपके स्वास्थ्य के साथ ही उद्यम और शारीरिक व्यायाम भी अच्छा रहेगा। डॉ. भारत पांडेय ने अपने व्याख्यान में पेटेंट के माध्यम से पारंपरिक भारतीय ज्ञान की सुरक्षा के महत्व पर विचार साझा किए। डॉ. पांडेय ने पारंपरिक ज्ञान के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया और पेटेंटिंग के संभावित लाभों पर भी बात की। डॉ. भारत पांडेय ने राष्ट्रीय कार्यशाला पर बात करते हुए कहा कि इस कार्यशाला का आयोजन करने और समर्थन करने हेतु यूकॉस्ट देहरादूंन के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, डॉ. डी.पी. उनियाल, हिमांशु गोयल का धन्यवाद दिया। कार्यशाला में डॉ. जयसी पटेल, डॉ. कमला बोरा, डॉ प्रदीप कुमार, डॉ शिलेभ गुप्ता आदि विद्वानों ने भी अपने विचार रखें।