विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस -भाजपा सहित अब यूकेडी में भी प्रत्याशियों की लिस्ट में सम्मिलित नहीं होने के चलते बगावत शुरू हो गई है। 11 प्रत्याशियों की लिस्ट में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत का नाम नहीं होने से नाराज रणजीत ने पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है तो लालकुआं से पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल अब निर्दलीय ही मैदान में होंगे। वही भाजपा से अल्मोड़ा विधायक रघुनाथ सिंह चौहान भाजपा पर आरोप-प्रत्यारोप के साथ निर्दलीय मैदान में उतरने को बेकरार है। यही हाल कुछ अन्य विधानसभाओं में देखने को मिल रहा। हालांकि यह लोकतंत्र का चुनाव है और यहां किसी भी पार्टी में एक ही ब्यक्ति का एकाधिकार नहीं हो सकता। पार्टी नेतृत्व का विवेक है कि वह ब्यक्ति की जनता में मजबूती और प्रसिद्धि के अनुरूप प्रत्याशी का निर्धारण करें। लेकिन वर्तमान में धनबल-बाहुबल के चलते राजनीती का जो विकृत स्वरूप सामने आया है उसने लोकतंत्र के स्वरूप को बदल कर रख दिया है। जनता तो आरोप लगाती ही थी कि नेता भ्रष्ट और स्वार्थी होने लगे, लेकिन अभी चौकाने वाली बात यह है कि नेता भी पार्टियों पर आरोप कर रहे कि पैसे से टिकट का निर्धारण हुआ। कई समाचार स्थलों में देखने को भी मिला है कि नेता जी रोते हुए अपना दुखड़ा ब्यक्त कर रहे पैसे भी गए और टिकट भी नहीं मिला। बाबजूद शीर्ष नेतृत्व डैमेज कंट्रोल हेतू रूठो को मनाने की कोशिश में जुटा है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कभी ग्राम स्तर से लेकर केंद्र में मजबूती के साथ रही कांग्रेस पार्टी में उत्तराखंड प्रदेश के मुखिया अब उस राह पर चल पड़े है जहां उन्हें पार्टी हित के सरोकारों से ज्यादा ब्यक्तिगत हितों की चिंता ज्यादा कचोड़ने लगी है और शायद यही वजह है कि वह पिछले चुनावों की पुनरावृत्ति को सहर्ष स्वीकारते हुए भी वह वहां अपना पड़ाव बना बैठे जहां का परिणाम वह स्वयं समझ रहे है।
कहावत है कि
“यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहि
सीस उतारे भुई धरै, तब पैठे घर माहि।”
अर्थात अहंकार का त्याग कर ही ब्यक्ति जनता के प्यार एवं सहयोग का भागी बनता है। पिछले विधानसभा चुनाव में पहाड़ और मैदान सहित दो-दो सीटों से चुनाव लड़कर कहीं के भी नहीं रहे पूर्व सीएम हरीश रावत, रणजीत के रण क्षेत्र में उतर तो गए पर रणजीत रावत द्वारा निर्दलीय ही चुनाव लड़ने की बात पर असहज भी दिख रहे है, शायद यहीं कारण है कि हरीश रावत अब यह कहने से भी नहीं चूके कि रणजीत रावत मेरे छोटे भाई की तरह हैं और पार्टी ने जरूर उनके लिए कुछ बेहतर सोचा होगा। हालांकि सूत्रों के अनुसार रामनगर सीट से सबसे बड़े दावेदार रणजीत सिंह रावत को सल्ट सीट पर शिफ्ट होने के लिए मनाने की कोशिशें भी बदस्तूर जारी है और यहीं वजह है कि सल्ट समेत छह सीटों को फिलहाल होल्ड रखा गया है। बताते चलें कि इसी सीट से प्रदेश के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री ने भी चुनाव में विजय प्राप्त की लेकिन पूर्व निर्वाचित विधायक के स्वयं के आमंत्रण एवं स्थानीय जनता की भावनाओ के अनुकूल रहते हुए। अमृता रावत जीती तो जनभावनाओं के अनुकूल सहज बन कर न कि अपने ही समर्थकों को ठेस पहुंचाकर।