भूदान यज्ञ के प्रणेता भारत रत्न विनोबा भावे

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प्रस्तुति – नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले आचार्य विनोबा भावे मूलत: एक सामाजिक विचारक थे जिन्होंने भूदान आंदोलन के जरिए समाज में भूस्वामियों और भूमिहीनों के बीच की गहरी खाई को पाटने का एक अनूठा प्रयास किया।           
विनोबा का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के एक गांव में हुआ। शुरुआती शिक्षा के बाद वह संस्कृत के अध्ययन के लिए ज्ञान नगरी काशी गए। काशी में उन्होंने समाचारपत्रों में महात्मा गांधी का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण पढ़ा। इस भाषण ने विनोबा के जीवन की दिशा बदल दी क्योंकि इससे पहले वह महात्मा बनने के लिए हिमालय या क्रांतिकारी बनने के लिए बंगाल जाने वाले थे। उन्होंने पत्र लिखकर महात्मा गांधी से मिलने का समय मांगा। महात्मा गांधी से पहली ही मुलाकात के बाद दोनों का गहरा संबंध जुड़ गया। बापू ने उन्हें अपने वर्धा आश्रम का जिम्मा सौंप दिया। उन्होंने गांधी दर्शन के साथ तमाम प्रयोग किए। इस दौरान उनकी आध्यात्मिक साधना भी चलती रही। देश की आजादी के आंदोलन में विनोबा कई बार जेल गए। 1940 में महात्मा गांधी ने उन्हें पहला वैयक्तिक सत्याग्रही घोषित किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने धूलिया जेल में गीता पर मराठी में लिखी पुस्तक ‘गीताई’ को अंतिम रूप दिया। इसी प्रकार विभिन्न जेलों में उन्होंने अपनी कई पुस्तकों की रचना की जिनमें ‘स्वराज्य शास्त्र’, ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ शामिल हैं। विनोबा स्वयं कई भाषाओं के न केवल ज्ञाता थे बल्कि वह लोगों को भी कई भारतीय भाषाएं सीखने के लिए प्रेरित करते थे।विनोबा के नेतृत्व में तेलंगाना आंदोलन के दौरान क्षेत्र की एक हरिजन बस्ती में भूदान आंदोलन की नींव पड़ी। भूमिहीन मजदूरों की समस्या के हल के रूप में भूदान आंदोलन की लोकप्रियता पूरे देश में जल्द ही फैलने लगी। इस आंदोलन के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में कई भूमि स्वामियों ने अपनी भूमि दान की। विनोबा के व्यक्तित्व का एक अन्य बड़ा पक्ष उनकी पदयात्राएं थी। उन्होंने लगातार 13 वर्ष पूरे भारत की पदयात्राएं की। विनोबा ने चंबल घाटी में दस्यु समस्याओं को दूर करने के लिए दस्यु उन्मूलन प्रयासों में भी सक्रियता से योगदान दिया।

विनोबा ने 25 दिसंबर 1974 से अगले एक वर्ष तक मौन व्रत रखा था। इसी दौरान देश में आपातकाल लगाया गया था। मौन रहते हुए विनोबा ने इसे ‘अनुशासन पर्व’ की संज्ञा दी थी। इसके कारण विनोबा राजनीतिक विवाद में आ गए। उनका निधन 15 नवंबर 1982 को हुआ। विनोबा को 1958 में प्रथम मैग्सायसाय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया। कोरापुट जिले में विनोबा की यात्रा के जारी वृतांत के बीच आज विनोबा की 126वीं जयंती के अवसर पर हम कुछ कड़ियां आगे जाकर 11 सितंबर, 1955 के दिन का स्मरण कर रहे हैं। जब कोरापुट के गुनपुर गांव में विनोबा का जन्मदिन मनाया गया था। 

विनोबा अपने 61वें जन्मदिन पर 11 सितंबर को गुनपुर में थे। विनोबा की साठवीं सालगिरह को लेकर उत्कल प्रांत में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं में गहरा हर्ष था, वे इससे अभिभूत थे कि इस खास दिन विनोबा कोरापुट जिले में हैं। उत्साह की यह लहर ग्रामदानी गांवों की संख्या भी लगातार बढ़ा रही थी, 11 सितंबर तक कोरापुट जिले में 469 ग्रामदान हो चुके थे। विनोबा 29 मई 1955 को कोरापुट जिले में आये थे। वर्षा -जल से लबालब इन तीन महीनों में कोरापुट जिले में सिर्फ ग्रामदान का आंकड़ा ही नहीं बढ़ रहा था बल्कि ग्रामदानी गांवों में शिक्षा, स्वावलम्बन की नयी रोशनी भी फैल रही थी। कोरापुट जिले में 180, गंजाम में 25, मयूरभंज में 37 सर्वोदय कार्यकर्ता, जिनमें 45 महिलाएं थीं। छोटे -छोटे गांवों में रहकर वहाँ आदिवासियों को खादी -ग्रामोद्योग, खेती, पशुपालन का प्रशिक्षण दे रहे थे। विनोबा की यह यात्रा एक ओर सन् 55 की बाढ़ और मलेरिया से जूझ रही थी तो दूसरी तरफ खड़े चरखे, अंबर चरखे और करघे को चलाने का सैंकड़ों आदिवासी भाई -बहन प्रशिक्षण लेकर बेहद उत्साह से कताई -बुनाई में जुट गये थे। कस्तूरबा निधि ट्रस्ट की कार्यकर्ता और नवजीवन मंडल के सदस्य मालती देवी और विश्वनाथ पटनायक के निर्देशन में आदिवासियों को उनके जंगल में ही बांस से नये उत्पादन, कपास की खेती, बढ़ई -लुहारी- बांध -तालाब निर्माण कारीगरी का प्रशिक्षण विभिन्न प्रांतों से आये कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जा रहा था। 

विनोबा की यात्रा से पहले कोरापुट के इस वनवासी क्षेत्र में सिर्फ बांस की झोपड़ी होती थी। विनोबा ने हर ग्रामदानी गांव में ईंटों के पक्के ‘ गांधी -घर ‘ बनाने को कहा, जहाँ गांव के खादी एवं ग्रामोघोग केंद्र, सहकार मंडल केंद्र खुले, यहीं ग्राम -सभा होने लगी। मनमोहन चौधरी अपनी पुस्तक ‘भूमि-क्रांति की महानदी’ में लिखते हैं कि विनोबा के आगमन के बाद तीन महीनों में ही इन गांवों में लोग ईंटों के उद्योग से परिचित हुए। लोगों ने चमड़ा -रंगाई और पशुओं के चमड़े के काम सीखे। यह चमड़ा वर्धा में नालवाड़ी चर्मशाला में भेजा जाने लगा। इस तरह सन् 1934 में गांधीजी ने उड़ीसा में पदयात्रा करके खादी एवं ग्रामोद्योग के संकल्प को जो प्रेरणा दी थी, वह कार्य एक बार फिर नयी प्रेरणा के साथ आगे बढ़ा और छोटे -छोटे उन गांवों तक उजाला बन कर फैला जहाँ घने जंगलों की वजह से सिर्फ अंधेरा रहता था। आदिवासी गांवों में शराब उन्मूलन में विश्वनाथ पटनायक पहले से जुटे थे। मलेरिया उन्मूलन के लिए विनोबा की प्रेरणा से गांवों में पहुंचे चिकित्सकों ने भी बहुत निष्ठा से गांवों में रहकर जागृति लाने का कार्य किया। 

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भूदान यात्रा के कार्यकर्ताओं ने गांवों में अनौपचारिक शिक्षा की नींव रखी। ‘ गांधी -घर ‘ और बांस की झोंपड़ियों में सुबह बच्चों को और शाम को प्रौढ़ लोगों को पढ़ाया जाने लगा। कोरापुट जिले में साक्षरता तब सिर्फ पांच फीसदी थी। जिसे बढ़ाने के निर्देश विनोबा ने दिया। देश के अनेक प्रांतों से सर्व -सेवा -संघ के सर्वोदयी भाई -बहनों ने कोरापुट, मयूरभंज, बालेश्वर, गंजाम में आकर साक्षरता के साथ ही तेल -धानी, मधुमक्खी पालन, शहद उघोग, कताई -बुनाई, साबुन बनाने और बांध, तालाब बनाने के गुर सिखाये।  आगे जाकर इस क्षेत्र से कुशल श्रमिक, लुहार, चर्मकार और बांस के सामान के शिल्पकार तैयार हुए। विनोबा ने उत्कल की जनजातियों के साहित्य एवं संगीत को विकसित करने के लिए शब्दकोश, व्याकरण पर काम करने पर बल दिया। उड़िया के प्रसिद्ध साहित्यकार गोपीनाथ महोन्ति ने यह जिम्मा संभाला। उन्होंने अलिखित व असंकलित कंध और गादव जनजातियों के साहित्य एवं संगीत को नवीन संरचना दी। 

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विनोबा ने दूसरे राज्यों के उच्च शिक्षित युवक -युवतियों को कोरापुट व अन्य आदिवासी जिलों के गांव -गांव में घूमकर शिक्षा, चिकित्सा के प्रसार के लिए कहा। इसलिए विनोबा का जन्मदिन करीब आने पर उड़ीसा के विभिन्न जिलों में काम कर रहे स्वयंसेवक प्रसन्नता से झूम उठे। सभी ने तय किया कि 11 सितंबर को जहाँ भी विनोबा होंगे, वहाँ एक छोटा -सा समारोह आयोजित किया जाये और यह सौभाग्य गुनपुर गांव को मिला। विनोबा के जन्मदिन पर पूरे उत्कल के सर्वोदय कार्यकर्ता गुनपुर में जुटे। विनोबा के यात्री दल के सभी सदस्य तो साथ थे ही। विनोबा ने इस अवसर पर एक छोटा -सा समारोह भी आयोजित किया गया। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवकृष्ण चौधरी उनकी पत्नी मालती देवी, नवकृष्ण चौधरी के बड़े भाई ‘ उत्कल गांधी ‘ गोपबंधु चौधरी और उनकी पत्नी एवं उत्कल में ‘ मां ‘ की ख्याति प्राप्त रमादेवी, उत्कल के मूर्धन्य स्वतंत्रता सेनानी और विद्वान आचार्य हरिहरदास, कोरापुट के ओजस्वी नायक विश्वनाथ पटनायक, अन्नपूर्णा मोहराणा, पं. कृपासिंधु पाणिग्रही, निशिमणि खूंटिया, निमाई चरणदास सहित अनेक प्रमुख व्यक्तित्व इस अवसर पर उपस्थित थे। कोरापुट के विभिन्न गांवों में भूदान -यज्ञ के लिए कार्य कर रहे सभी कार्यकर्ता भी गुनपुर पहुंच गये थे। सर्वोदयी विचारक दादा धर्माधिकारी, अण्णा साहेब सहस्त्रबुद्धे, धीरेन्द्र मजूमदार, चारूचंद्र भंडारी, आशादेवी आर्यनायकम् की प्रेरक उपस्थिति भी गुनपुर में भावनाओं के एक अद्वितीय दर्शन का बिंब उत्पन्न कर रही थी। 

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इस विशिष्ट भावनात्मक कार्यक्रम में विनोबा ने जो संदेश दिया। उसका उल्लेख वीण वैरागी ने अपनी पुस्तक  ‘हृदय जोड़ने वाला बाबा’ में किया है। वीण वैरागी लिखती हैं – 11 सितंबर, गुनपुर में सभी कार्यकर्ता आये। जन्मदिन के स्वागत के बाद बाबा ने कहा, आज कोरापुट की ओर सारे देश की नजर है। यहां आज जो प्रयोग हो रहा है, वह सफल हो गया तो सारे देश को और दुनिया को नया मार्ग मिलेगा। हमने यहां के जंगल-पहाड़ों में तपस्या करके एक शक्ति निर्माण की है। आज देश को इस शक्ति की अत्यंत आवश्यकता है। भर मूसलाधार वर्षा में आपका जिला एक नयी आग से उज्जवल हो रहा है। एक नयी ज्योति के प्रकाश में चमक रहा है। यह दिन यानी मेरा साठ वर्ष पूरा करने का दिन न होकर भूमिक्रांति यशस्वी करने के संकल्प का दिन है, ऐसा मैं मानता हूं। यह जिला मलेरिया के लिए प्रसिद्ध है। फिर भी वर्षा में कितने ही कार्यकर्ता सतत घूम -घूमकर काम कर रहे हैं। बाबा की यात्रा के लिए तो सभी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए सुविधाएं नहीं रहतीं। उन सबका, मैं आज अंतःकरणपूर्वक  अभिनंदन करता हूं।किसी भी प्रकार की कीर्ति, यश की अपेक्षा न रखकर अखंड अविरत परिश्रम करने वाले इन कार्यकर्ताओं को निष्काम कर्म जैसा दुर्लभ काम भी सुलभ हुआ, यह देखकर मुझे अतिशय प्रसन्नता होती है। हमको इस काम के लिए जो नेता मिला, उससे उत्तम नेता दूसरा हो ही नहीं सकता। परमेश्वर ही अपना नेता है। वह जड़ का चेतन बनाता है, नालायक को लायक बनाता है। हमको जीवन में स्वराज्य-प्राप्ति के यज्ञ की पूर्ति के बाद तुरंत दूसरा भूदान-यज्ञ शुरू करने का महोद्भाग्य मिला है। तपस्या से नवनिर्मित होती है। यह सामान्य कार्य न होकर यज्ञ कार्य है। यह हृदय शुद्धि पर आधारित है। आज के दिन हमको शून्य होने का संकल्प करना चाहिए। 

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