खबर सच है संवाददाता
देहरादून। सूबे के मुखिया द्वारा प्रदेश में तबादलों के जरिये अफसरों की कुर्सियां हिलाने के बावजूद अफसरशाही अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने को तैयार नहीं है। परिणाम यह है कि चुनाव नजदीक होने के चलते सरकार के मंत्री लोक लुभावन वादे तो कर रहे पर अफसरशाही उनके मीठे लॉलीपॉप पर चटनी का स्वाद ज्यादा खूबसूरती से दिला रही है। जिसका ज्वलन्त उदाहरण मंत्रिमंडलीय उपसमिति की वह रिपोर्ट है, जिसे कई दौर की बैठकों के बाद फाइनल होने के बाद शासन को सौंपने के बावजूद मंत्रिमंडल की बैठक में पेश नहीं किया गया। इस मसले पर सरकार के मंत्रियों की नाराजगी के बाद शासन के अधिकारियों को ताकीद किया गया कि वे फाइनल हो गई मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट को जल्द से जल्द कैबिनेट में पेश करे।
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बताते चले कि 16 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में राज्य के करीब 18 हजार पुलिस कर्मियों के ग्रेड पे और 22 हजार उपनल कर्मचारियों के मसले पर मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई थी। उपसमिति ने तीन बैठकों में अपनी रिपोर्ट फाइनल कर शासन को सौंप दी थी। लेकिन रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद से कैबिनेट की तीन बैठकें निपट गईं, लेकिन सब कमेटी की रिपोर्ट नहीं लाई गई। जिसकी रिपोर्ट लटकाए जाने को लेकर कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत, गणेश जोशी व अन्य मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से मिलकर कहा कि मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट फाइनल होने के बाद उसे फौरन बैठक में लाया जाए। इतना ही नहीं त्रिवेन्द्र से लेकर धामी सरकार तक सबसे करीबी रहे कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में पुलिस ग्रेड पे के मसले पर मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनीं। तीन बैठकों में मंथन करने के बाद उपसमिति ने शासन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन कैबिनेट बैठक में दोनों ही रिपोर्ट नहीं लाई गई।
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बेशक अफसरशाही की मनमानी को रोकने हेतु मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधू भी लगातार नसीहत देते कह रहे है कि जनहित से जुड़े मसलों की फाइलों को तेजी से निपटाए और यदि उनमें नियम-कायदे आड़े आ रहे हैं तो उन्हें बदलें। बावजूद मजबूत हो गई अफसरों की रीढ़ अब लचकने के तैयार नहीं दिखती। बहरहाल हालात यह “कि ज़िन्दगी तेरे किसी रंगों से, रंगदारी ना हो पायी, हर लम्हा मैंने कोशिश की, पर यारी ना हो पायी“
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