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श्री हरि नाम की धूम मची रामनगर क्षेत्र में, चित्रकूट बना महान तीर्थ
रामनगर। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने बुधवार (आज) श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि अधर्माचरण करने वाले कुमार्गगामी लोगों का संग त्यागकर, जितेंद्रिय, श्रेष्ठ महापुरुषों का संग व उनकी सेवा करके अपने जीवन को कल्याणमय बनाएं। क्योंकि सत्पुरुषों का आचरण व कार्य सदैव अनुकरणीय होता है। उन्होंने कहा कि सत्संग का प्रकाश हमारे अंतर्मन को प्रकाशित करता है और हमें भी उस ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर मन में धारण कर परमपिता परमेश्वर को पाने का प्रयास करना चाहिए। मगर जब तक सत्य का संग नहीं होगा सत्संग से भी कोई लाभ प्राप्त हो नहीं सकेगा। जिस प्रकार सूरज की किरणें हमें तब तक लाभ नहीं पहुंचा सकती जब तक कि हमारे घरों की खिड़की दरवाजे बंद रहेंगे। ठीक उसी प्रकार हम गुरु व परमात्मा की कृपा के अधिकारी तभी बन सकते हैं जबकि हम उनके द्वारा दिए गए ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर्गत में उतारेंगे।
अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में महाराज श्री ने कहा कि हम सभी रावण इत्यादि के पुत्रों का प्रतिवर्ष दहन करते हैं लेकिन इस अवसर पर अपनी आसुरी प्रवृत्तियों को भी त्यागने का संकल्प लें तभी हमारा इन त्योहारों को मनाना पूर्णरूपेण सार्थक होगा। भगवान राम की रावण पर विजय, सत्य की असत्य पर, अच्छाई की बुराई पर, धर्म की अधर्म पर विजय है यह हमेशा होती रही है और होती रहेगी। असत्य, अधर्म, अन्याय व बुराई हो सकता है कि हमें कुछ समय के लिए फलते फूलते से प्रतीत हों परंतु अंत में विजय सत्य, धर्म व अच्छाई की होगी। हम सभी इन प्रतीकात्मक पर्वों से प्रेरणा व संदेश ग्रहण कर अपने जीवन को दिव्य, मर्यादित, कर्तव्यपरायण, प्रभुभक्तिमय, राष्ट्रीयता व मानवता से ओतप्रोत बनाएं। आज लोगों के धर्म से विमुख होने के कारण ही मानवता की कमी भी दिखाई देने लगी है। हमें समाज को बदलने के लिए लोगों की दृष्टि बदलने की आवश्यकता है। किसी को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारना चाहिए। यह सब बातें अध्यात्म के ज्ञान के बिना संभव नहीं है। जो व्यक्ति विपत्तियों, बाधाओं व परेशानियों से लड़ने की क्षमता रखता है वही जीवन के विकास का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है। यदि संतता के मार्ग पर चलना चाहे तो अपने अंदर क्षमा, करुणा, उदारता, कृपा आदि सद्गुणों को अपनाएं। संत तो संतता के गुणों से है ना कि बाहरी वेशभूषा, दिखावा इत्यादि से। साधु, भक्त या महात्मा बनकर जो लोगों को धोखा देते हैं वे स्वयं को धोखा देते हैं। व अपना जीवन पापमय बनाते हैं। दूसरों का अहित चाहने वाले या करने वाले का कभी हित नहीं होता। पतन या पाप का कारण प्रारब्ध नहीं है बल्कि विवेक अनादर करके कामना के वश में होने पर मनुष्य पापाचरण करता है तभी उसका पतन होता है। किसी भी स्थिति अवस्था, प्राणी, पदार्थ, वस्तु आदि से जो सुख की कामना रखता है वह कभी सुखी नहीं हो सकता। वह सदैव निराश हो ही रहेगा व दुखी रहेगा। धर्म के वैज्ञानिक तथ्य नकारने से ही ढोंग, पाखंड व आडंबर बढा है। हमारे इस पवित्र भारत देश में भी अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, घृणा व विद्वेष का वातावरण बनता जा रहा है। अधिक से अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करना लोगों ने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया है। ऊंच-नीच तथा भेदभाव को अनुचित बताते हुए कहा कि सभी लोगों को मिल जुल कर रहना चाहिए। क्योंकि दुनिया में सभी धर्म सही शिक्षा देते हैं। त्याग, दृढ़ता संयम व तदनुकूल आचरण इन चारों से एकत्र होने पर ही सफलता प्राप्त होती है।
महाराज श्री के दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों से सारा वातावरण भक्तिमय हो गया तथा सभी भक्तजन मंत्रमुग्ध व भावविभोर हो गए व ‘हरिबोल’ की धुन में झूम उठे। सारा वातावरण “श्री गुरु महाराज” “कामां के कन्हैया”व “लाठी वाले भैया” की जय जयकार से गुंजायमान हो उठा। महाराज श्री के दर्शनार्थ व दिव्य प्रवचन सुनने राजस्थान, गुजरात, उड़ीसा, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, बंगाल, मुंबई व देश के विभिन्न भागों से हजारों की संख्या में भक्तजन यहां पहुंचे। महाराज जी द्वारा गाए गए भजन को सुनकर तथा उनकी सुंदर छटा को देखकर वहां उपस्थित भक्तों की प्रेमवश अश्रुधारा बह बैठी। पंडाल छोटा पड़ जाने के कारण भक्तों को खड़े होकर ही प्रवचन सुनकर संतोष करना पड़ा। महाराज श्री के दिब्य प्रवचनों के बाद विशाल भंडारे का भी आयोजन एवं हरेला त्यौहार भी पारंपरिक ढंग से मनाया गया। कन्या पूजन में करीब 1008 कन्याओं का पूजन करके महाराज जी ने दक्षिणा प्रदान की। कार्यक्रम के दौरान यज्ञ में अनेक छोटे बच्चों के मुंडन एवं यज्ञोपवीत संस्कार भी हुए। इस दौरान श्री हरि कृपा आश्रम में अपार जनसैलाब उमड़ा तथा दूरदराज से आए भक्तों की महाराज श्री के दर्शनार्थ क़तारें लगी थी।