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गढीनेगी पहुंचने पर हुआ स्वामी श्री हरि चैतन्य महाप्रभु का भव्य व अभूतपूर्व स्वागत
गढीनेगी। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एंव विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा धाम आश्रम गढीनेगी में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि सनातन धर्म का आदि है ना अंत, इसीलिए इसे सत्य सनातन धर्म कहते हैं। सत्य का तात्पर्य जो त्रिकालाबाद है। जो था, है व रहेगा, जिसके बनने या बिगड़ने की तारीख पता लगे वे मत, पंत या संप्रदाय कहलाते हैं। हम सभी का सम्मान करते हैं लेकिन जिसके बनने या बिगड़ने की तारीख पता ना हो जो सृष्टि के आरंभ से पहले व प्रणय के बाद भी रहेगा वही सनातन है। हमारे वैज्ञानिक ऋषियों की महान देन है सनातन धर्म, व सनातन संस्कृति ढकोसला नहीं विज्ञान सम्मत है जिसे विज्ञान की कसौटी पर खरा परखा जा सकता है। यदि यह कह दें कि सभी का प्रादुर्भाव सनातन से ही हुआ है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि वर्तमान काल सनातन के लिए स्वर्णिम काल है बड़ी हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव होता है जब लोगों में सनातन के लिए पुनः आकर्षण पैदा होते हुए देखते हैं। हमारे पवित्र तीर्थ उपासना स्थलों संस्कृति के मूल सिद्धांतों को उत्तर उत्तर बढ़ते हुए देखते हैं। बच्चे बच्चे के मन में श्री राम, श्री कृष्ण, मां जगदंबा, भगवान शिव, संतो-महापुरुषों, ऋषि, मुनियों, वीर अमर शहीदों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों सनातन की रक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले सिख पंथ के दस गुरुओं व उनके परिवारों, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, जगतगुरु आर्द्र शंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध इत्यादिक के लिए जो भाव व श्रद्धा का सैलाब उमड़ते हुए देखते हैं तो हृदय में जो प्रसन्नता होती है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। अधर्माचरण करने वाले कुमार्गगामी लोगों का संग त्यागकर, जितेंद्रिय, श्रेष्ठ महापुरुषों का संग व उनकी सेवा करके अपने जीवन को कल्याणमय बनाएं। क्योंकि सत्पुरुषों का आचरण व कार्य सदैव अनुकरणीय होता है। उन्होंने कहा कि सत्संग का प्रकाश हमारे अंतर्मन को प्रकाशित करता है और हमें भी उस ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर मन में धारण कर परमपिता परमेश्वर को पाने का प्रयास करना चाहिए। मगर जब तक सत्य का संग नहीं होगा सत्संग से भी कोई लाभ प्राप्त हो नहीं सकेगा। जिस प्रकार सूरज की किरणें हमें तब तक लाभ नहीं पहुंचा सकती जब तक कि हमारे घरों की खिड़की दरवाजे बंद रहेंगे।ठीक उसी प्रकार हम गुरु व परमात्मा की कृपा के अधिकारी तभी बन सकते हैं जबकि हम उनके द्वारा दिए गए ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर्गत में उतारेंगे।
अपने धारा प्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा व श्री गुरु महाराज कामां के कन्हैया व लाठी वाले भैय्या की जय जयकार से गूँज उठा।