संकल्प की शक्ति अपरिमित – श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

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गढीनेगी। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संकल्प की शक्ति अपरिमित है। संकल्प कालजयी है संकल्प की गति अबाध हैं जहां संकल्प है, वहां कुछ भी असंभव नहीं है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की अभेद शक्ति भी मनुष्य के संकल्प को रोक नहीं सकी और व्यक्ति चन्द्रमा तक पहुंच गया। सागर की अथाह गहराई हो या एवरेस्ट का उच्चतम शिखर संकल्प के आगे छोटा पड़ गया। संकल्प मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों का सामूहिक निश्चय है एक बार अगर ये शक्ति जग जाए तो सृष्टि की पूरी ताकत भी इसे परास्त नही कर सकती ।

उन्होंने कहा कि धार्मिक कथाएं, पौराणिक गाथाऐं, ऐतिहासिक घटनाएं सभी एक स्वर में संकल्प शक्ति रूपी इस महाशक्ति की क्षमता को प्रभावित करते हैं। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का प्रारंभ संकल्प मंत्र से ही होता है। अर्थात मनोवांछित इच्छा प्राप्त करने के लिए शुभ कार्य का आरंभ एक शुभ संकल्प से ही होता है। संकल्प शक्ति का यदि संधि विच्छेद किया जाए तो स्वयं +कल्प होता है कल्प यानि कितने युग बितने के बाद कल्प आता है यह बता रहा है कि मनुष्य किसी कार्य को असंभव इसलिए कहता है क्योंकि उसे लगता है कि यह कार्य उसके जीवन में पूरा नहीं हो सकेगा। गहराई से विचार करे तो समय की सीमा उसकी सामर्थ्य और शक्ति को तोड़ देती है लेकिन परिभाषा के अनुसार देखें व चेतना में भरे तो यह हमारी सोई हुई शक्तियों को जगाकर किसी कार्य को भी असंभव न मानते हुये पूरा करने की प्रेरणा देगा। आवश्यक नहीं है कि कर्म करने वाले को फल उसे उस जीवन में ही मिल जाए। हो सकता है कि उस संकल्प को पूर्ण होने में अर्थात लक्ष्य प्राप्ति में कई पीढ़ियां भी गुजर सकती हैं। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों ने हमें मात्र संकल्प नहीं ‘तनमे मनः शिव संकल्पमस्तु’के आधार पर शिव अर्थात कल्याण कारी, सुंदर व सत्य संकल्प करने की प्रेरणा दी। सबसे महान व्यक्ति वह है जो दृढतम निश्चय के साथ सत्य का अनुसरण करता है । जो व्यक्ति उघोग वीर है व कारे वाग्वीर व्यक्तियों पर अधिकार जमा लेता है, जिसे हमारा ह्रदय महान समझे वह महान है आत्मा का निर्णय सदा सही होता है। किसी का तिरस्कार ना करें, किसी को भी नुकीले व्यंग बाण ना चुभाये ऐसा कुछ ना बोलें जिससे किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे, किसी का दिल दुखे या प्रेम एकता और सद्भाव नष्ट हो जाए, अशांति हो जाए कलह क्लेश या वैमनस्य पैदा हो जाये। हमारे हदय उदार व विशाल होने चाहिए।

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