प्रस्तुति- नवीन चन्द्र पोखरियाल खबर सच है संवाददाता
विभिन्न पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने विष्णु के आठवें अवतार के रूप में जन्म लिया था। कृष्ण अवतार ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकलने के बाद आठवें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5125 वर्ष पूर्व) को हुआ था। ज्योतिष के मुहूर्त खंड अनुसार ठीक रात 12 बजे उस वक्त महा निशाकाल था।
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शास्त्रों में जन्माष्टमी की रात्र को “मोहरात्रि” कहा गया है। अनेक पौराणिक शास्त्रों में कृष्ण-रहस्य के अंतर्गत योगेशश्वर कृष्ण को कली (महाकाली) का रूप बताया गया है। कृष्ण का अर्थ है काला अर्थात रात्रि, शब्ध रात्रि “रति” से उत्पन्न हुआ है अर्थात प्रणय। शब्ध प्रणय का अर्थ है महाभोग और प्रणय की उत्पत्ति प्रणव से हुई है। प्रणव का अर्थ होता है “ॐ” अर्थात परमेश्वर का निराकार स्वरूप।
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शक्ति-संगम तंत्र के काली खंड में अनेक विशिष्ट रहस्यमय रात्रियों का उल्लेख है। उनमें महानिशा अर्थात कृष्ण जन्माष्टमी को अधिक महत्त्व देते हुए कालरात्रि नाम से संबोधित किया गया है। इसे कृष्ण रात्रि भी कहते हैं। कालरात्रि में कली अर्थात कृष्ण की उपासना से सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होती है। कालरात्रि जहां शत्रुविनाशनी है, वहीं इसे शुभत्व की प्रतीक सुख-सौभाग्य प्रदायिनी होने का भी गौरव प्राप्त है। मंत्रों में कालरात्रि को गणेश्वरी की संज्ञा प्राप्त है जो ऋद्धि-सिद्धि प्रदायिनी है। प्राचीन काल से शैव और शाक्त तांत्रिक इसे कालरात्रि की संज्ञा देते रहे हैं। जहां तक शाक्त साधकों का प्रश्न है, वे इस रात्रि में महारात्रि, मोहरात्रि ,महामाया ,कालरात्रि, काली, महाकाली, श्मशान काली आदि की परम साधना कर तंत्र सिद्ध करते हैं। जिन रातों में तंत्र साधना करने से साधकों को शीघ्र सिद्धि मिल जाती है वे विशिष्ट रात्रियां कही गई हैं। वास्तव में कालरात्रि के एक अंग श्रीविद्या शक्ति की उपासना, साधना से सुख सौभाग्य, यशकीर्ति का वरदान मिलता है।
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