खबर सच है संवाददाता
रामनगर। सच्चा भाव ही सच्ची उपासना है। सच्चे हृदय से प्रेम व श्रद्धा पूर्वक की गई प्रार्थना को परमात्मा अवश्य ही सुनते हैं, चाहे व्यक्ति को वेद, शास्त्र, पुराणों का ज्ञान ना हो। आज हमारी, हमारे परिवार की देश की व समाज की जो दुर्दशा हो रही है विभिन्न प्रयास करने के बावजूद जिससे हम उबर नहीं पा रहे, प्रयास के साथ-साथ प्रभु से उनकी कृपा की याचना से परिपूर्ण भाव सहित प्रार्थना भी करनी चाहिए। उक्त उद्गार श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर, युगदृष्टा, प्रेमावतार स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि दृढ़ता, संयम, त्याग व तद्नुकुल आचरण इन चारों के एकत्रित होने पर ही सफलता प्राप्त होती है। योग्यता से अधिक महत्वकांक्षी नहीं होना चाहिए। भूतकाल से प्रेरणा लें, भविष्य के लिए योजना चाहे बनाए, लेकिन जीए वर्तमान में। सबसे महत्वपूर्ण समय वर्तमान है। उसका उत्तम से उत्तम उपयोग करें। सबसे महत्वपूर्ण काम वर्तमान में जो तुम्हारे सामने है उसे सावधानी से संपन्न करें। सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो वर्तमान में तुम्हारे सामने हैं, उसके साथ सम्यक रीति से व्यवहार करें। साधु का वेष बनाकर भी समाज को धोखा देना महापाप है। कामनाओं को सीमित करें, इनका कोई अंत नहीं, यह हृदय को पीड़ित करती हैं।
उन्होंने कहा कि सच्चा संत व महात्मा न तो अपने को संत और महात्मा मानता है ना घोषित करता है और ना दूसरों के द्वारा कहे जाने पर उसे स्वीकार करता है। विनम्र या नम्रता की दृष्टि से नहीं, वह सर्वत्र भगवान की महिमा को देखते हैं और उसी में सहज स्थित रहता है। वह त्याग का भी त्यागी होता है, किसी प्रकार के गर्प, दर्प, अभिमान उसके पास फटक नहीं सकते। उन्होंने कहा कि जगत की यथासामर्थ्य सेवा तथा परमात्मा व संतों से प्रेम करो। संतो, शास्त्रों व अवतारों को मात्र अपनी कमियां छुपाने की ढाल ही ना बनाएं, उनसे प्रेरणा शिक्षाएं उपदेश भी ग्रहण करके अपने जीवन में उतारे।