जो आपस में लड़ना सिखाए या हिंसा का संदेश दे, वह धर्म नहीं हो सकता। धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं, लेकिन निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए कुछ लोग धर्म के नाम पर देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
हमारे मत, पंथ, संप्रदाय विभिन्न हो सकते हैं, लेकिन धर्म एक ही है। रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मंजिल सबकी एक ही है। हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं तो आपस में क्यों लड़ते हैं। हम आज हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन इत्यादि बने हैं जिसमें कोई बुराई नहीं। एक सच्चे इंसान बने हैं या नहीं, अंतरात्मा में यह सोचने पर मजबूर करता है धर्म। हम धर्म का सम्मान करें, लेकिन औरों का निरादर नहीं।
जो व्यक्ति विपत्ति, बाधाओं व परेशानियों से लड़ने की क्षमता रखता हो वही जीवन के विकास का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है।
प्रकृति हमारी जन्मदाती मां से भी अधिक रक्षा करती है। बाढ़, भूकंप, सूखा, प्राकृतिक अन्याय विपदाएं हमारी प्रकृति के साथ खिलवाड़ का ही परिणाम रहा है।
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