खबर सच है संवाददाता
रामनगर। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां श्री हरि कृपा आश्रम चित्रकूट में विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि दुख,अशांति, कलेह-क्लेश, उलझन शोक भय, आदि से लाख प्रयास करके भी लोग बच नहीं पा रहे हैं। बहुत से लोगों को देखें तो उस हिरण की तरह है जो जाल में से निकलने की कोशिश करता है परंतु अपने सिंगो के भी कारण उस जाल में और भी फंसता चला जाता है। दुख-सुख, हानि-लाभ, जीवन-मृत्यु, अनुकूल-प्रतिकूल, यश-अपयश इत्यादि विभिन्न प्रकार की परिस्थितियां आती जाती रहती है। संसार परिस्थितियों प्राणी-पदार्थ इत्यादि सभी परिवर्तनशील है, परंतु विचारशील प्राणी कभी भी किसी भी हाल में धर्म व परमात्मा का साथ कभी नहीं छोड़ता। सुख के साधन होना व सुखी होना दोनों में बहुत अंतर है। सच्चा सुख धर्म व परमात्मा की शरण में ही प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा कि रोग, शोक, भय, चिंता, अशांति आदि के कारण खोज कर दूर करो तो उपाय निष्फल नहीं होंगे। ढोंग,पाखंड,अंधविश्वास, रूढ़िवादिताओं पर महाराज श्री ने तीखा प्रहार किया। आज वास्तु शास्त्र के बढ़ते प्रचलन के बारे में कहा कि लोग आज वास्तु के अनुसार तोड़फोड़ कर मकान की दिशा बदलते हैं, लाभ तो स्वयं को बदलने से ही होगा। भाग्य-भाग्य का रोना रोने से कुछ नहीं होने वाला। अनेक अंगूठियां व नग पहनने व वार, दिशा के हिसाब से करने मात्र से कुछ नहीं होता। सही दिशा में प्रयास, हृदय से परमात्मा का स्मरण, यथासंभव सभी की शुभकामनाओं व शुभाशीर्वाद कार्य के प्रति लगन निष्ठा व उत्साह सफलता में सहायक होंगे।उन्होने परिवार, नगर,राष्ट्र व समाज में आपस में मिलजुल कर प्रेम एकता व सद्भाव को बनाए रखने में बनाए रखने व बढ़ावा देने पर बल दिया। अपने ओजस्वी व दिव्य प्रवचनों में उन्होंने कहा कि जीता हुआ मन तथा इंद्रियाँ मित्र तथा अनियंत्रित मन व इंद्रियाँ सबसे बड़े शत्रु है।संसार को जीतने वाला महावीर नहीं बल्कि मन व इंद्रियों को जीतने वाला महावीर है। मन बाधक भी है तथा साधक भी। इसे अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधक बनाएं। मन के हारे हार है मन के जीते जीत है। सुख-दुख भी मन की अनुभूति के विषय मात्र हैं। मन की अनुकूलता में सुख व प्रतिकूलता में दुख जीव अनुभव करता है।
महाराज श्री ने कहा कि परमात्मा का स्मरण हृदय से करते हुए कर्म करें। जगत की यथासामर्थ्य सेवा तथा परमात्मा व संतों से प्रेम करें।बदले की भावना से वैर, क्षमा से प्रेम बढ़ता है। क्षमा कायरों का नहीं,वीरों का आभूषण है।यदि आपके अंदर बदले की भावना, ईर्ष्या, द्वेष विरोध है वहां नर्क है, तथा प्रेम, एकता व सद्भाव है वही स्वर्ग है। यदि संतता के मार्ग पर बढ़ना चाहे तो अपने अंदर,क्षमा, करूणा उदारता कृपा आदि सद्गुणों को अपनाएं। उन्होंने कहा कि सद्भाव मुक्ति व असद्भाव पतन का मार्ग है। यथासंभव व्यर्थ के उलझाव व टकराव से बचने का प्रयास करें। जहां मान व प्रतिष्ठा की कामना होती है वहां दंभ व कपट को आश्रय मिल जाता है। आज समाज सुधारकों कि नहीं, समाज सेवकों की आवश्यकता है। हमारे आंतरिक भाव जिस प्रकार से होंगे धीरे-धीरे बाहरी चेष्टाएँ भी वैसी होने लगेगी।जब कोई व्यक्ति निष्पक्ष व शांत होकर अपनी अंतरात्मा से परामर्श लेता है तो उसे सदैव सत्यपरामर्श ही प्राप्त होता है। संसार में किसी को भी,कभी भी, किसी प्रकार से भी दुख, भय या क्लेश नहीं पहुंचाना चाहिए। तथा ना ही पहुंचाने की प्रेरणा या इच्छा करनी चाहिए। सदैव सत्य स्वरूप परमात्मा की शरण लेनी चाहिए। जिस सत्य में कपट होता है वह सत्य, सत्य नहीं समझा जाता। सभी अपने अपने कर्तव्यों का पालन करें। इससे अधिकार प्राप्ति की लड़ाई समाप्त हो जाएगी। क्योंकि एक का कर्तव्य दूसरे का अधिकार है। वह व्यवहार औरों से ना करें जो तुम्हें अपने लिए अच्छा नहीं लगता। हम दूसरों को प्रेरणा, उपदेश या शिक्षा देने से पूर्व अपने जीवन में भी उतारे वरना उसका प्रभाव नहीं होगा। परमात्मा के नाम की महिमा का वर्णन किया। नाम को राम से भी बड़ा बताया। भारतीय संस्कृति में कदम कदम पर संस्कारों का भी उल्लेख व महत्व को प्रेमरस मर्मज्ञ महाराज श्री ने विस्तार से भक्तों को समझाया। उन्होंने कहा कि हम सभी को प्रभु व गुरु पर पूर्ण विश्वास रखते हुए तथा अपना आत्मविश्वास बढ़ाते हुए पूर्ण लगन व निष्ठा से अपने अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। स्वयं को शक्ति संपन्न बनाने का प्रयास करें। अपनी शक्तियों को गलत खानपान, अनियमित, असंतुलित, अनियंत्रित दिनचर्या,चरित्र हीनता व कुपथ पर चलकर नष्ट ना करें।शांति का दुरुपयोग ना हो जाए इसलिए बल के साथ साथ बुद्धि व विवेक का भी इस्तेमाल करें। एकमात्र धर्म व अध्यात्म ही हमें हमारे पतन,समाज में आ रही बुराइयों व विकृतियों से बचा सकता है। अतः सदा सर्वदा धर्म व परमात्मा की शरण ग्रहण करें। उन्होंने कहा कि संतों,शास्त्रों,महापुरुषों व अवतारों से प्रेरणाये, शिक्षाएं व उपदेश ग्रहण करके अपने जीवन को आदर्श दिव्य तो बनाए ही लेकिन जिन्हें हम नीच व अधर्मी मानते हैं अगर उनके जीवन से भी हमें कुछ अच्छाई मिल जाती है तो उसे भी अपने जीवन में उतारे। जिसको अच्छाई लेनी होती है तो वह नीच से नीच व्यक्ति से भी ग्रहण कर लेते हैं वरना दुर्योधन की तरह श्रीकृष्ण से भी नहीं।
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अपने धाराप्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध व भावविभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो गया व “श्री गुरु महाराज, कामां के कन्हैया व लाठी वाले भैया” की जय जयकार से गूंज उठा। महाराज श्री के भजनों को सुनकर सभी झूम झूमकर नाचने लगे। नवरात्रि महोत्सव एंव विराट धर्म सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले हज़ारों भक्तों के साथ साथ श्री महाराज जी के दिव्य व प्रेरणादायी प्रवचन सुनने, देवी पूजन, आरती दर्शन व श्री महाराज जी का आशीर्वाद लेने वालों में मुख्य रूप से पूर्व राज्य मंत्री पुष्कर दुर्गापाल, पूर्व विधायक जसपुर शैलेंद्र मोहन सिंघल, भागीरथ लाल चौधरी, उर्मिला चौधरी, हेमभट्ट सहित अनेक अधिकारी व गणमान्य लोग मौजूद रहे।
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