गढीनेगी। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एंव विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज के आज यहाँ पधारने पर ग्राम वासियों, क्षेत्र वासियों व दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने भव्य व अभूतपूर्व स्वागत किया। बैंड, ढोल के साथ हरिबोल की धुन पर नाचते, गाते हुए शोभायात्रा श्री हरि कृपा धाम आश्रम तक निकाली गई। जगह-जगह हरि भक्तों ने श्री महाराज जी का व शोभा यात्रा का स्वागत किया व प्रसाद वितरण किया। 9 जून से 12 जून तक आयोजित श्री हरि प्राकटयोत्सव एवं विराट धर्म सम्मेलन परम पूज्य श्री महाराज जी के सानिध्य में ए.एन. झा इंटर कॉलेज करनपुर में आयोजित होगा जिसमें सुप्रसिद्ध भजन गायक पियूषा कैलाश अनुज, टेकचंद, लहरी और गोविंद पहुंचेंगे। विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देने के लिए वृंदावन से एक मंडली पहुंचेगी जो मयूर नृत्य, रास नृत्य, चरकुला नृत्य,डांडिया व राजस्थानी नृत्य प्रस्तुत करेंगे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री, अनेक पूर्व मुख्यमंत्री, अनेक केंद्रीय व प्रदेश के मंत्री,अनेक सांसद व विधायक, अनेक न्यायाधीश व अधिकारी पहुँचेंगे। देशभर के हर प्रांत से हजारों की संख्या में श्रद्धालु नित्य पहुंचकर कार्यक्रम में भाग लेंगे।
आयोजन समिति ने सभी को सप्रेम आमंत्रित किया है। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण अनेक चैनलों के साथ-साथ श्री महाराज जी के यूट्यूब चैनल श्री हरि कृपा आश्रम पर सीधा प्रसारण होगा। इस दौरान उपस्थित हजारों भक्तों को संबोधित करते हुए श्री महाराज जी ने कहा कि जन्म सार्थक उसी का है जिसका जीवन उत्थान की ओर हो पतन की ओर नहीं। परमात्मा एक है उनके नाम उपासना विभिन्न हो सकते हैं हम सभी उस एक ही सर्वशक्तिमान की संतान हैं जो जीव मात्र का परम सुहृदय व हितैषी है। कर्म के साथ-साथ उसमें पूर्ण व दृढ़ विश्वास करो। प्रभु की कृपा निश्चय ही समस्त बंधनों, समस्त विपत्तियों व समस्त कठिनाइयों से उबार लेगी। कैसा भी पापी यदि प्रभु शरण में आ जाए तो वे उसे साधु या भक्त बना लेते हैं। उसे सनातन शांति मिल जाती है। उस भक्त का कभी पतन नहीं होता। व उनकी कृपा सारे सकंटो से अनायास ही उभार लेती है। यदि प्रयास के साथ-साथ ईश्वर की महानता पर भी विश्वास हो तो निश्चय ही हम दुखों से मुक्त हो सकते है।अत: प्रतिकूल परिस्थितियों में जब चारों ओर केवल निराशा और घोर अंधकार ही दिखाई दे, अशांति की भयानक आंधी हो उस समय पूर्ण दृढ़ विश्वास के साथ प्रभु चिंतन करते हुए चिंताओं का परित्याग करके अपना कर्म करो। अपने सुख दुख, सांसारिक प्राणियों के सामने रोने के बजाए सतगुरु या परमात्मा के सामने ही रोना चाहिए।
उन्होंने कहा कि तीर्थ स्थलों, उपासना स्थलों, प्राकृतिक रमणीय स्थलों, हिमालय इत्यादि में शांति मिलती है लेकिन उस शांति को बरकरार रखना या ना रखना हमारे ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का स्मरण मात्र मुख से नहीं, साथ ही हृदय से यदि हो तो विशेष लाभदायक होता है। धर्म से, गुरु से या किसी संत से अथवा परमात्मा से यदि आप जुड़े हैं तो आपका और भी उत्तर दायित्व हो जाता है कि आपके खानपान, रहन सहन, बोलचाल, व्यवहार, आचरण व स्वभाव आदि से लगे कि आप धर्म,सतगुरु या परमात्मा से जुड़े हो। पापाचार, अनाचार तथा बुराइयों को त्याग कर सत्कार्य करें तभी हमारा सत्संग में आना,मंदिरों, तीर्थों तथा विभिन्न धर्मस्थलों में आना पूर्ण सार्थक होगा।
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