त्याग और प्रेम की एक उत्कृष्ट मिसाल हैं हरि कृपा पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य महाप्रभु, उनका त्याग केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी व्यापक है

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खबर सच है संवाददाता
 
जन्मदिवस विशेष गुरुवार 12 जून 2025
 
काशीपुर /गढ़ीनेगी। जब जब भी समाज धर्म से विमुख होकर दिशाविहीन होता है तब तब उसे सही दिशा प्रदान करने के लिए, लोगों को धर्म की ओर अग्रसर करने के लिए, समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वास, बुराइयों को दूर करने के लिए पमपिता किसी न किसी स्वरूप में प्रकट होते है। स्वामी श्री हरि चैतन्य महाप्रभु को उनके करोड़ों भक्त साक्षात् ईश्वर का स्वरूप ही मानते हैं। लेकिन महाराज श्री स्वयं को सिर्फ परमात्मा का एक साधारण दास व समाज का सेवक मानते हैं तथा निराभिमान होकर परमात्मा के ही गुणानुवाद करते हैं तथा समाज के लिए पूर्णतया समर्पित रहते हैं। अपने बारे में कभी कुछ भी नहीं कहने वाले महाराज श्री हमेशा राष्ट्रप्रेम, सांप्रदायिक सद्भाव व एकता एवं भारतीय संस्कृति को ही सर्वोपरि बताते हैं।
 
आइए ! हम सभी ऐसे युगपुरुष श्री हरि चैतन्य महाप्रभु के जीवन दर्शन पर एक नजर डालकर अपने जीवन को धन्य करें। 
 
ब्रजभूमि में भगवान श्री कृष्ण की पावन लीलास्थली कामवन धाम (कामां) जो कि ब्रज के द्वादश (12) वनों में से एक पंचम प्रमुख वन है, में 12 जून 1960 को एक परम धार्मिक सुसंस्कृत, संपन्न प्रभु भक्त तथा उच्च पवित्र कुल में श्री हरि चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ। पिता श्री देशराज जी तथा माता निर्मल जी के साथ-साथ संपूर्ण क्षेत्र आपके जन्म के समय की अनेक दिव्य घटनाएं देखकर चमत्कृत हुए व स्वयं को परम सौभाग्यशाली मानने लगे। कामवन के बड़े बुजुर्गों के अनुसार 6 माह की शैशवावस्था में ही यह बालक मंत्रोच्चारण करने लगा व करीब दो वर्ष की छोटी सी अवस्था में राम चरितमानस गान व भजन तथा ध्यान में लीन होने लगा। जन्म समय का नाम योगेंद्र था। एक मुसलमान फकीर के कहने पर खिदमत नाम रखा गया जो प्रचलित भी बहुत हुआ। फकीर के अनुसार बालक बड़ा होकर पूरे समाज की खिदमत यानी सेवा करेगा जो आज चरितार्थ हो रहा है। राम-स्नेही संप्रदाय के एक प्रमुख संत आपको बचपन से ही परमहंस कहा करते थे। एक बंगाली संत इनको तल्लीन होकर कीर्तन करते देख चैतन्य महाप्रभु का अवतार कहा करते थे। बचपन में ही आपको परमात्मा का साक्षात्कार हुआ व मानते हैं कि आपके द्वारा साक्षात प्रभु ने भोग भी ग्रहण किया। मानस, गीता इत्यादि तो इन्हें कंठस्थ थे। अपनी शिक्षा एम.कॉम पूर्ण करने के उपरांत मात्र 21 वर्ष की छोटी सी अवस्था में ही समस्त सांसारिक सुखों का परित्याग करके दिव्य व तेजोमय अलौकिक संत स्वामी रामानंद पुरी जी महाराज से अनेक दिव्य शक्तियों को प्राप्त करने के पश्चात् सन्यास ग्रहण कर लिया। पूर्ण रूपेण सात्विक व सादा जीवन अपनाकर पैदल यात्रा प्रारंभ की। मैदानों, बीहड़ों, दुर्गम पर्वतों व हिमालय (22,500) फीट तक लगभग 23000 किलोमीटर की पदयात्रा करके समाज के लोगों से भेंट कर उनके जीवन के संबंध में गहरी जानकारी प्राप्त की। बारहों महीने चाहे कड़ाके की ठंड हो या लू चलती हो, मैदान में हो या हिमालय की ऊंचाइयों पर, आप बदन पर मात्र खादी की एक धोती व चादर, सादा चप्पल व गुरुदेव से प्राप्त दिव्य लकुटी (लाठी) धारण किए हुए आज भी लोगों को धर्म की ओर उन्मुख करा रहे हैं। अनेक प्रमुख भाषाओं के ज्ञाता व देश में “मेरे हरि” “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैय्या” के नाम से सुविख्यात महाराज श्री ने अनेक पुस्तकें व कई हजार पद व रचनाएं लिखी हैं। आध्यात्मिक चेतना जागृत करने हेतु अनेक महत्वपूर्ण केंद्र स्थापित किए हैं। जिनमें निर्माणाधीन श्री हरि कृपा आश्रम, कामवन (कामां) बृजभूमि, श्री हरि कृपा धाम आश्रम गढी़नेगी काशीपुर उत्तराखंड व श्री हरि कृपा आश्रम चित्रकूट रामनगर नैनीताल उत्तराखंड इत्यादि प्रमुख हैं। आपके द्वारा स्थापित श्री हरेश्वर महादेव मंदिर जिसकी नींव हिंदू , मुस्लिम व सिक्ख सभी ने मिलकर रखी है। आज संपूर्ण भारत में सांप्रदायिक सद्भाव व एकता का जीता जागता प्रतीक बन चुका है। विश्व बंधुत्व का भाव लिए बिना किसी प्रकार के भेदभाव के हर हाल में, हर समय मुख पर एक प्यारी मोहक मुस्कुराहट लिए, सभी के कल्याण के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। आपके हर कार्यक्रम में व संपर्क में बेहिचक, प्रेम व श्रद्धा से, बिना किसी भेद के सभी धर्मों के लोग अपनत्व भाव से, समान रूप से आते हैं। अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, बड़े-छोटे, शिक्षित-अशिक्षित, जाति, मत, धर्म, रंग, भाषा किसी भी प्रकार का लेश मात्र भेदभाव आपके जीवन में देखने को नहीं मिलता। पर्वतीय क्षेत्र में अनेक स्थानों पर आप बलि प्रथा बंद करवा चुके हैं। तथा लोगों को दहेज प्रथा, बाल विवाह, मृत्यु भोज, कन्या भ्रूण हत्या, प्रदूषण व गौ हत्या इत्यादि के विरुद्ध जागरूक कर चुके हैं। पिछले चार दशक में लाखों लोग आपसे प्रेरणा लेकर शराब, मांसाहार, जुआ, लॉटरी आदि बुरे व्यसनों, बुराइयों व अंधविश्वासों को त्याग चुके हैं व त्याग रहे हैं तथा ईश्वरोन्मुख होकर सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आपके दिव्य व ओजस्वी प्रवचन पूर्णतया व्यवहारिक एवं कसौटी पर खरे-परखे हुए होते हैं। यही कारण है कि युवा पीढ़ी आपकी और सर्वाधिक आकर्षित हो रही है। श्री हरि चैतन्य महाप्रभु कोई व्यवसायिक कथावाचक नहीं है, मात्र लोगों के प्रेम व भावनाओं से ही खींचे हुए देश-विदेश जाते रहे हैं, जा रहे हैं व जाते रहेंगे। लगभग सम्पूर्ण विश्व में ही महाराज श्री धर्मप्रचारार्थ जाते रहे हैं। संपूर्ण भारत वर्ष की पदयात्रा करके व आज तक हर क्षेत्र में जाकर भारतीय अध्यात्म का डंका बजाते रहे हैं व बजाते रहेंगे। 
 
सियोल ओलंपिक स्टेडियम सियोल दक्षिण कोरिया में आयोजित विश्व धर्म संसद व यूनिवर्सल पीस कांफ्रेंस जिसमें 102 देशों के प्रतिनिधि, अनेक राष्ट्राध्यक्ष व सवा लाख लोग एकत्रित हुए उसमें भारत का प्रतिनिधित्व करके महाराज श्री ने भारत का गौरव बढ़ाया। महाराज श्री को बेस्ट स्पिरिचुअल लीडर ऑफ़ इण्डिया, इन्टरनेशनल बेस्ट स्पिरिचुअल लीडर इन हिन्दू मैथलॉजी, पर्यावरण रत्न, ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ़ कॉमंस में भारत गौरव व ताशकंद में इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवॉर्ड इन पीस एंड डिवोशन के अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। महाराज श्री का यहीं सरलपन है जो आज केंद्र से लेकर तमाम राज्यों के नेता मंत्रियों को अपनी ओर खींच लाता है और वह स्वतः ही महाराज श्री के अनुयायी बन जाते है। फिर महाराज श्री एक छोटे कार्यक्रम में सिद्द्त करें या फिर कोई वृहद कार्यक्रम हो नेता अथवा अधिकारी उनके कार्यक्रम में स्वतः ही चलें आते है।
 
महाराज श्री ने पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीयता व अमर शहीदों की याद में व उनके परिजनों के सम्मान व सहयोग हेतु “एक शाम शहीदों के नाम”कार्यक्रम के माध्यम से एक अभियान चला रखा है। श्री हरि कृपा आश्रम कामवन (कामां) महाराज श्री के प्रेरणा से बन रहा है। धीरे-धीरे व पूर्ण श्रमदान (कारसेवा) से निर्माण हो रहा है। पूर्ण रूप से हरियाली के मध्य एक छोटा सा सुंदर प्यारा सा आश्रम का रूप ले रहा है। आश्रम के एक और विमल कुंड है जिसका निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने कराया था और उसको तीर्थराज का दर्जा प्राप्त है और कामां कामवन भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ास्थली भी रही है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक है।
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