परलोक को मानेंगे तो भटकेंगे नहीं- स्वामी हरि चैतन्य

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दुःख- सुख के निमित्तों का प्राप्त होना व समाप्त हो जाना प्रारब्ध का फल हैं।परन्तु इन निमित्तों को लेकर जो चिन्ता, शोक, भय व विषाद होता है, वह अज्ञानता के कारण होता है, प्रारब्ध के कारण नहीं।
संतान वियोग, धन-हानि, ब्यापार घाटा, रोग, अपयश इत्यादि प्रारब्ध के कारण ही हो सकते हैं। परन्तु इन सबसे उतपन्न विषाद अज्ञानता के कारण ही होता हैं। अज्ञानता के कारण यदि इन घटनाओं से स्वयं दुःखी न होते तो इन घटनाओं में इतनी शक्ति नहीं कि ये हमे दुःखी कर सकें। यदि अप्रिय घटनाओ से दुःखी कर पाने की शक्ति होती तो संत व महापुरुष को इनसे दुःख क्यों नहीं होता हैं ?
शास्त्र कहते हैं कि आत्मा को जानने वाला ब्यक्ति शोक से मुक्त रहता हैं। सर्वत्र परमात्मा को ही देखने वाले आत्मदर्शी के लिए रोग, शोक, मोह का कोई कारण ही नहीं रह जाता हैं। दुःख रूपी संसार से मुक्ति का सरवोत्तम उपाय परमात्मा की शरण लेकर विवेक व वैराग्य युक्त बुद्धि द्वारा शोक, भय तथा चिंता का त्याग करना हैं।परमात्मा की शरण लेकर परमात्मा के स्वरूप में अचल भाव से स्थित हो जाना हैं।

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आत्मा की उन्नति व जगत में धार्मिक भाव, सुख- शान्ति व प्रेम के विस्तार हेतु पाप-ताप से बचने के लिए परलोक व पुनर्जन्म को मानना परम आवश्यक हैं। जीवन से निराश होकर, असफलताओं से दुःखी होकर, अपमान व आपकीर्ति से बचने अथवा इच्छापूर्ति न होने के कारण आत्महत्या करने वालो की संख्या निरन्तर बढ़ रही हैं। आत्महत्याओं का एक मात्र कारण आत्मा की अमरता व परलोक में अविश्वास हैं। यदि हमें यह निश्चय हो जाये कि हमारा जीवन इस शरीर तक सीमित नहीं हैं, हम किसी रूप में पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। इस शरीर का अंत करने से कष्टों का अंत नहीं होगा बल्कि इस शरीर के भोगो को भोगे बिना ही प्राण त्याग करने से हमारा भविष्य व जीवन और भी कष्टमय हो जायेगा, यदि यह बात मस्तिष्क में बैठ जाए तो हम आत्महत्या का साहस ही नहीं करेंगे। आत्महत्या को तो हमारे शास्त्रों में घोर पाप माना हैं।

आज संसार में झूठ, कपट, दुराचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, ब्यभिचार, अनीति, अविश्वास, विलासिता, इंद्रिय लोलुपता, बेईमानी, दुश्चरित्र, अपराध, भितरघात, विश्वासघात, हिंसा, घृणा, वैमनस्य आदि बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक मात्र कारण यही हैं कि लोग वर्तमान को ही सुखी बनाने की कोशीश में जुटे हैं।जब तक जियो, सुख से जियो, कर्जा कर- कर के भी अच्छे पदार्थो का उपभोग करो, मरने के बाद क्या होगा किसने देखा हैं। इसी सर्वनाशकारी मान्यता की ओर आज प्रायः सारा संसार जा रहा हैं, यही कारण हैं मानव सुख के बदले अधिकाधिक दुःख के दलदल में धंसता जा रहा हैं। परलोक व पुनर्जन्म को न मानने का यह अवश्यम्भावी फल हैं।

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ईश्वर भक्ति व धर्म का किसी भी स्थिति में त्याग नहीं करना चाहिए। आज चाहे धार्मिक अनुष्ठानो की संख्या में व्रद्धि हो रही हो परन्तु धर्म का आचरण अपेक्षाकृत उतना नहीं बढ़ रहा हैं और हमारे व समाज के नैतिक चरित्र तथा मानवता के निरंतर हो रहे ह्यास का प्रमुख कारण हैं। धर्म पथ से भटकन ही हमें चिंता, भय, शोक की ओर ले जाती हैं। यही भटकन हमारे दुःखो का कारण हैं। प्रभु का स्मरण करने वाले और धर्म पथ पर बढ़ते जाने वाले को दुःख नहीं सताते हैं। वह दुःख-सुख को प्रभु के प्रसाद के रूप में गृहण करता हैं और सुखी रहता हैं।

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