खबर सच है संवाददाता
भरतपुर। प्रेमावतार, युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कामां में उपस्थित भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विश्व बंधुत्व का भाव रखती है भारतीय संस्कृति, सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव भारतीय संस्कृति। मत, पंथ, सम्प्रदाय विभिन्न हो सकते है, परन्तु धर्म एक ही है। परमात्मा के नाम, उपासना, पद्दतियां उसे जानने व पाने के मार्ग विभिन्न हो सकते है, परन्तु परमात्मा एक है। धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं। अफसोस आज धर्म के नाम पर लोगों को तोड़ने व बांटने की कोशिश की जाती है।
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उन्होंने कहा मै सभी धर्मो के का सम्मान करता हूँ परन्तु धर्म के नाम पर आतंक व हिंसा फैलाने का प्रयास अनुचित है। मेरे सभी भाइयों को भी वास्तविकता समझनी चाहिए व इस हिंसा के तांडव को बन्द करने में अपना समर्थन व सहयोग देना चाहिए। आज वर्तमान समय में देश में जो जातिवाद के नाम पर वाद-विवाद फैल रहा है उसको मिटा कर आपस में प्रेम व सौहार्द का वातावरण बनाकर आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश दिया।
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अपने दिब्य प्रवचनों में उन्होंने कहा कि देश को तोड़ने व बाटने की जो घृणित व कुत्सित साजिशें की जा रही हैं उन्हें सफल नहीं होने देना है।राष्ट्र में सभी प्रकार के मतभेदों व संकीर्णताओं को त्यागकर आपसी प्रेम, एकता व सदभाव को बनाए रखना है। देश की अमूल्य व महान संस्कृति के महत्व को समझें व उसे जीवन में अपनाएं। पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण त्यागें। सभी अपने-अपने कर्तब्यों का पालन करें। इससे अधिकार प्राप्ति की लड़ाई समाप्त हो जायेगी। क्योंकि एक का कर्तब्य दूसरे का अधिकार है। वह ब्यवहार औरों से न करें जो तुम्हें अपने लिए अच्छा नहीं लगता। हम दूसरों को प्रेरणा, उपदेश या शिक्षा देने से पूर्व उसे अपने जीवन में भी उतारे, वरना उसका प्रभाव नहीं होगा।
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उन्होंने कहा कि जीता हुआ मन तथा इंद्रियां मित्र, तथा अनियंत्रित मन इंद्रियां सबसे बड़े शत्रु है। संसार को जीतने वाला महावीर नहीं बल्कि मन व इंद्रियों को जीतने वाला महावीर है। मन बाधक भी तथा साधक भी है। इसे अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधक बनाये। मन के हारे हार है व मन के जीते जीत। सुख व दुःख भी मन की अनुभूति के विषय मात्र है। मन की अनुकूलता में सुख व प्रतिकूलता में दुःख जीव अनुभव करता है।
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