महाराज श्री के हल्द्वानी आगमन पर सैकड़ो अनुयायियों के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता, नेता एवं वरिष्ठ अधिकारी भी पहुंचे उनका आशीर्वाद लेने
हल्द्वानी। प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहां उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि प्रभु को समर्पित, कर्तव्य परायण,दृढ़ निश्चायी भक्त की रक्षा स्वयं श्री हरि करते हैं। ऐसे पुण्यआत्मा भक्त का समस्त संसार भी चाहे शत्रु क्यों ना हो जाए परंतु उसका बाल बांका नहीं कर सकता। भक्तराज प्रहलाद के जीवन का उदाहरण देते हुए उन्होंने उसे मानव मात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया। मिथ्या अहंकार में हिरण्यकश्यप ने स्वयं अपने ही पुत्र प्रहलाद पर कितने अत्याचार किये, जिसका अपराध शायद मात्र इतना था कि उसने परमात्मा का नाम लेना नहीं छोड़ा। लेकिन सदैव रक्षा की प्रभु ने व उस अहंकारी हिरण्यकश्यप का नाश भी किया। भक्त का कभी नाश नहीं हो सकता। परमात्मा की कृपा जिस पर भी हो उसके लिए विष भी अमृत बन जाता है। शत्रु भी मित्रवत हो जाते हैं अपार सागर भी गाय के पैर के गढ़े के समान हो जाता है। हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है अग्नि भी शीतल हो जाती है। सुमेरु जो अलंघय पर्वत है जिसे कोई लांघ नहीं सकता ऐसा अलंघय पर्वत सुमेरु भी उसके लिए रजकण के समान हो जाता है। कठिनतम कार्य भी सरल हो जाता है वही प्रहलाद के साथ भी हुआ।
अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि जीता हुआ मन तथा इंद्रियां मित्र तथा अनियंत्रित मन व इंद्रियां सबसे बड़े शत्रु है। संसार को जीतने वाला महावीर नहीं बल्कि मन व इंद्रियों को जीतने वाला महावीर है। मन बाधक भी है तथा साधक भी है। इसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधक बनाएं। मन के हारे हार है व मन के जीते जीत है। सुख व दुख भी मन की अनुभूति के विषय मात्र हैं। मन की अनुकूलता में सुख व प्रतिकूलता में दुख जीव अनुभव करता है। श्रद्धा हमारे अहंकार को दूर करती है। श्रद्धावश ही हम दूसरों का हृदय से सम्मान करते हैं। श्रद्धा का प्रतिफल हमें आशीर्वाद के रूप में प्राप्त होता है। श्रद्धा का परिणाम सदैव शुभदायक औरमंगलकारी होता है। इसलिए श्रद्धावान व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी अपने आत्मबल के सहारे टिका रहता है। सच्चे श्रद्धालुओं के सभी संकल्प पूर्ण हो जाते हैं। यदि हमारा मन निर्मल है हमारी मनोभूमि में अवगुणों का प्रदूषण नहीं है। और हम दुर्व्यसनों के शिकार नहीं है तो श्रद्धा,विश्वास और प्रेम के अंकुर पल्लवित होने में देर नहीं लगती। हम शीघ्र ही श्रद्धानत हो जाते हैं। भगवान के कृपा पात्र बन जाते हैं गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है जैसी जिसकी श्रद्धा होती है वैसा ही उसका स्वरूप हो जाता है, क्योंकि श्रद्धा सदैव अंत: करण के अनुरूप होती है, इसलिए मनुष्य को सदैव सात्विक श्रद्धा से युक्त रहना चाहिए। अपने धारा प्रवाह प्रवचनों में उन्होंने सभी को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण “श्री गुरु महाराज”, “कामां के कन्हैया” व लाठी वाले भैय्या की जय जय कर से गूंज उठा।
श्री महाराज जी के दर्शनों व दिव्य अमृत प्रवचनों के साथ ही मानस पाठ गायन की मृदुल आवाज़ को सुनने के लिए जहां भीड़ के रूप में उनके भक्तों का ताँता लगा रहा, तो वहीं भाजपा व कांग्रेस के प्रमुख राजनेताओं व पूर्व कैबिनेट मंत्री व विधायक बंशीधर भगत, अनेकों वरिष्ठ अधिकारी एंव गणमान्य लोगों ने भी श्री महाराज जी का आशीर्वाद ग्रहण किया।
बताते चलें महाराज श्री 17 जनवरी प्रातः 10 बजे हल्दूपोखरा नायक हल्द्वानी नैनीताल में बनने जा रहें चैतन्य धाम का शिलान्यास करेंगे। कल प्रातः 10 बजे यहां ऊँचापुल में अखंड राम चरित मानस प्रारंभ का समापन, फिर महाराज श्री के दिव्य प्रवचनो के बाद भण्डारे का भी आयोजन होगा।
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